क्या मम्मियूर मंदिर भगवान शिव की उदारता का प्रतीक है?
सारांश
Key Takeaways
- मम्मियूर महादेवा मंदिर भगवान शिव की उदारता का प्रतीक है।
- यह मंदिर त्रिशूर के पवित्र गुरुवायूर क्षेत्र में स्थित है।
- भगवान शिव ने अपना स्थान भगवान श्री कृष्ण को भेंट किया था।
- मंदिर की पूजा विधि गुरुवायूर मंदिर के समान है।
- मंदिर की पौराणिक कथा भक्तों के लिए प्रेरणा है।
त्रिशूर, 22 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। बाबा भोलेनाथ की महिमा का वर्णन सभी धार्मिक ग्रंथों में किया गया है। सृष्टि की रक्षा के लिए उन्होंने हलाहल का पान किया था।
केरल के त्रिशूर में महादेव का एक ऐसा मंदिर है, जो उनकी उदारता का प्रतीक है। हम बात कर रहे हैं मम्मियूर महादेवा मंदिर की, जहाँ उन्होंने अपना स्थान भगवान श्री कृष्ण को सौंप दिया था।
त्रिशूर जिले के गुरुवायूर में स्थित मम्मियूर महादेवा मंदिर को परशुराम द्वारा स्थापित 108 शिवालयों में से एक माना जाता है। यह मंदिर कई दृष्टियों से विशेष है। यह पवित्र शहर गुरुवायूर के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है और इसके बिना गुरुवायूर की यात्रा अधूरी मानी जाती है।
यदि भक्त श्री कृष्ण के श्री गुरुवायूर मंदिर के दर्शन हेतु आते हैं, तो उन्हें मम्मियूर महादेवा मंदिर के दर्शन भी अनिवार्य रूप से करने पड़ते हैं। प्राचीन समय से यह परंपरा चली आ रही है कि श्री कृष्ण के श्री गुरुवायूर मंदिर के दर्शन तभी पूरे माने जाएंगे, जब मम्मियूर महादेवा मंदिर का दर्शन होगा।
इस परंपरा का संबंध मंदिर की पौराणिक कथा से है। कथा के अनुसार, जब द्वारका नगरी जलमग्न हो गई और भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा भी उसमें डूब गई, तब भगवान गुरु और वायु देव को आदेश दिया गया कि वे दक्षिण भारत के एक पवित्र स्थान पर मंदिर की स्थापना करें। भगवान गुरु और वायु देव त्रिशूर के गुरुवायूर पहुँचते हैं, जहाँ पहले से महादेव तपस्या में लीन थे।
महादेव ने जब उनका उद्देश्य जाना, तो जिस स्थान पर वे तप कर रहे थे, वह स्थान उन्होंने श्री कृष्ण को भेंट कर दिया और स्वयं किसी अन्य स्थान पर साधना आरंभ कर दी। भगवान शिव की इसी महिमा और उदारता के कारण मंदिर का नाम मम्मियूर महादेवा मंदिर पड़ा। मम्मियूर का अर्थ है महिमा। जिस स्थल को भगवान शिव ने छोड़ा, वहीं श्री गुरुवायूर मंदिर का निर्माण हुआ।
श्री गुरुवायूर मंदिर और श्री मम्मियूर मंदिर के बीच विशेष संबंध है। गुरुवायूर श्री कृष्ण मंदिर के थंथरी (पुजारी) और मम्मियूर मंदिर में भी थंथरी का पद समान है। दोनों मंदिरों में लगभग सभी पूजाएं और अनुष्ठान एक समान किए जाते हैं।