क्या हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम ने महिलाओं और परिवारों में संपत्ति के अधिकारों की तस्वीर बदल दी?

सारांश
Key Takeaways
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में लागू हुआ।
- यह अधिनियम महिलाओं को संपत्ति में समान अधिकार देता है।
- संशोधन से बेटियों के अधिकारों को सशक्त किया गया है।
- यह अधिनियम हिंदू, जैन, बौद्ध, और सिख समुदायों पर लागू होता है।
- महिलाओं के बिना वारिस छोड़े संपत्ति की स्थिति में अधिकारों की व्याख्या की गई है।
नई दिल्ली, 17 जून (राष्ट्र प्रेस) । 17 जून, यह वह दिन है जब हिंदुओं के उत्तराधिकार से संबंधित अधिनियम का देश में प्रवर्तन हुआ। 1950 में लागू हुए संविधान के लगभग 6 साल बाद, देश की संसद ने हिंदुओं के लिए उत्तराधिकार कानून बनाया। इसे हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम कहा जाता है, जो 17 जून 1956 को लागू हुआ। यह अधिनियम बिना वसीयत के मृत्यु के मामलों में उत्तराधिकार को संहिताबद्ध और संशोधित करने के लिए बनाया गया था। सरल शब्दों में, यह अधिनियम यह निर्धारित करता है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति किस प्रकार और किन-किन लोगों के बीच बाँटी जाएगी।
यह अधिनियम हिंदुओं के साथ ही जैन, बौद्ध और सिख समुदायों के लिए उत्तराधिकार के नियमों को भी निर्धारित करता है। इसमें मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी शामिल नहीं हैं। अधिनियम की धारा-2 में इसके लागू होने की सीमा का उल्लेख है, जबकि धारा-3 में अधिनियम की संपूर्ण परिभाषा दी गई है। 1956 का अधिनियम 4 चैप्टर में विभाजित था, जिसमें अलग-अलग 31 सेक्शन शामिल थे। इन 31 सेक्शन के तहत विभिन्न सब-सेक्शन के माध्यम से पूरे कानून का निर्माण किया गया।
अधिनियम में यह स्पष्ट किया गया है कि जिस व्यक्ति के माता-पिता दोनों हिंदू हैं, या माता-पिता में से एक हिंदू है और उसे उसी परंपरा में पाला गया है, वही व्यक्ति हिंदू माना जाएगा। इसके अलावा, कोई भी व्यक्ति जो धर्म परिवर्तन करके या वापस हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख धर्म में आया हो, उसे भी इसका हिस्सा माना गया।
1956 के बाद से हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में कई संशोधन हुए हैं। 2005 में किए गए संशोधन ने महिलाओं के अधिकारों को और अधिक सशक्त किया। इसमें बेटियों को संयुक्त परिवार की संपत्ति में समान अधिकार दिए गए और कुछ भेदभावपूर्ण प्रावधानों को समाप्त किया गया।
विधि आयोग के अनुसार, 2008 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में 3 संशोधन हुए। सरकार ने 2005 के अधिनियम संख्या 39 में बदलाव को लेकर संशोधन का प्रस्ताव पेश किया। 2005 के अधिनियम संख्या 39 से संबंधित प्रस्ताव फरवरी 2008 में लाया गया, जो बेटियों के संपत्ति के अधिकार से जुड़ा था। किसी महिला द्वारा स्व-अर्जित संपत्ति के बिना वारिस छोड़े निर्वसीयत मृत्यु की स्थिति में जून 2008 में अधिनियम की धारा 15 में संशोधन का प्रस्ताव आया। फिर जुलाई 2008 में विधेयक की धारा 6 के स्पष्टीकरण के संशोधन के लिए प्रस्ताव लाया गया, ताकि "भागीदारी" की परिभाषा में मौखिक भागीदारी और कौटुंबिक समझौते को शामिल किया जा सके।