क्या देश में 10,000 एफपीओ में किसानों की हिस्सेदारी बढ़ रही है?

सारांश
Key Takeaways
- एफपीओ किसानों की सामूहिक ताकत को बढ़ाते हैं।
- किसान अपनी उपज का बेहतर मूल्य प्राप्त कर रहे हैं।
- सरकार का समर्थन इन संगठनों के विकास में महत्वपूर्ण है।
- उत्पादन लागत में कमी आ रही है।
- किसान उत्पादों की बिक्री ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर भी हो रही है।
नई दिल्ली, 15 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। देश में किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) में किसानों की भागीदारी में वृद्धि हो रही है, जिससे उन्हें उत्पादन लागत में कमी लाने और अपनी उपज के लिए उचित मूल्य प्राप्त करने में सहायता मिल रही है।
सरकार ने फरवरी 2020 के बजट में देश में 10,000 एफपीओ स्थापित करने का ऐलान किया था। इसके लिए अगले पांच वर्षों में 6,865 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया गया था।
रिपोर्टों के अनुसार, देश के 10,000 एफपीओ में लगभग 5 मिलियन से अधिक किसान शेयरहोल्डर बन चुके हैं।
कृषि मंत्रालय के मुताबिक, एफपीओ के कुल शेयरहोल्डर्स में तेलंगाना (0.67 मिलियन), उत्तर प्रदेश (0.59 मिलियन), आंध्र प्रदेश (0.57 मिलियन), मध्य प्रदेश (0.32 मिलियन) और महाराष्ट्र (0.3 मिलियन) का हिस्सा 50 प्रतिशत है।
एफपीओ एक सामूहिक संगठन है जो किसान उत्पादकों द्वारा बनाया गया है और यह छोटे और सीमांत किसानों की सहायता करता है।
एफपीओ किसानों को थोक इनपुट खरीदने की सुविधा, बेहतर सौदाबाजी की क्षमता और उपज का बेहतर मूल्य सुनिश्चित करने में मदद करता है।
आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 25 में 340 एफपीओ की बिक्री 10 करोड़ रुपए को पार कर गई है। वहीं, 1,100 से अधिक किसानों की बिक्री एक करोड़ रुपए से अधिक रही थी। इन एफपीओ का संयुक्त टर्नओवर 15,282 करोड़ रुपए रहा था।
रिपोर्टों के मुताबिक, 5,880 से अधिक किसान उत्पादक संगठनों के पास बीज लाइसेंस हैं, जबकि 5,500 से ज्यादा किसान समूहों के पास उर्वरक वितरण का लाइसेंस है। इसके अतिरिक्त, 400 से अधिक एफपीओ के पास कृषि रसायनों के वितरण के लिए डीलरशिप हैं, जिससे डीलर छूट का लाभ सदस्य किसानों तक पहुँचाना सुनिश्चित होता है।
200 से अधिक समूह अपने उत्पाद सरकार ई-मार्केटप्लेस (जीईएम) जैसे प्लेटफॉर्म पर बेच रहे हैं, जबकि कृषि उत्पादों की बिक्री भी अमेजन और फ्लिपकार्ट के माध्यम से बड़े पैमाने पर शुरू हो गई है।