क्या 'असहयोग आंदोलन' अहिंसा का हथियार बना? गांधीजी ने दिखाया आजादी का नया रास्ता

सारांश
Key Takeaways
- असहयोग आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया मोड़ लाया।
- महात्मा गांधी ने अहिंसा को अपने आंदोलन का मूल सिद्धांत बनाया।
- इस आंदोलन ने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया।
- लोगों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जागरूकता फैलाई।
- यह आंदोलन बाद के आंदोलनों की नींव बना।
नई दिल्ली, 31 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। 1 अगस्त 1920 को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया। महात्मा गांधी ने देश के हर कोने में आजादी के आंदोलन को एक नई दिशा दी। 'असहयोग आंदोलन' की शुरुआत करके उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध का एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया। यह आंदोलन भारतीय जनमानस को एकजुट करने में सहायक बना और स्वराज की मांग को और अधिक बल प्रदान किया।
गांधीजी के नेतृत्व में यह आंदोलन राजनीतिक जागरूकता फैलाने में सफल रहा, साथ ही यह भारतीयों में आत्मनिर्भरता की भावना को भी उजागर करने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।
वास्तव में, 'असहयोग आंदोलन' का आरंभ 1 अगस्त 1920 को हुआ था। यह ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ, विशेष रूप से रॉलेट एक्ट (1919) और जलियांवाला बाग नरसंहार (1919) के विरोध में शुरू किया गया। महात्मा गांधी का मानना था कि ब्रिटिश शासन बिना भारतीयों के सहयोग के नहीं चल सकता, इसीलिए उन्होंने अहिंसक तरीके से ब्रिटिश शासन का बहिष्कार करने का आह्वान किया।
इस आंदोलन का उद्देश्य था ब्रिटिश शासन का अहिंसक तरीके से विरोध करना, स्वराज की प्राप्ति, भारतीयों में आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करना और हिंदू-मुस्लिम एकता को मजबूत करना। इस दौरान लोगों से ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई उपाधियां और सम्मान लौटाने की अपील की गई। साथ ही, ब्रिटिश सरकार द्वारा संचालित स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार किया गया। विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करते हुए खादी और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने पर जोर दिया गया।
यह आंदोलन इतना प्रभावी था कि लोगों ने पूरे देश में ब्रिटिश शासन के खिलाफ जागरूकता फैलायी। लाखों भारतीयों, विशेषकर मध्यम वर्ग, किसानों और छात्रों ने इसमें सक्रिय भाग लिया। इसने उस समय हिंदू-मुस्लिम एकता को भी बढ़ावा दिया, जो एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को भारतीयों की एकजुट शक्ति का अहसास कराया।
साल 1922 में उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा में एक हिंसक घटना (पुलिस चौकी पर हमला और पुलिसकर्मियों की हत्या) के बाद महात्मा गांधी ने आंदोलन को 12 फरवरी 1922 को स्थगित कर दिया। गांधीजी के इस निर्णय से कुछ कांग्रेसी नेता निराश हुए, लेकिन उन्होंने अहिंसा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्राथमिकता दी।
असहयोग आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया अध्याय जोड़ा। इसने महात्मा गांधी को राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किया और अहिंसा के सिद्धांत को विश्व स्तर पर प्रचारित किया। यह आंदोलन बाद के आंदोलनों- जैसे सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन की नींव भी बना।