क्या लक्ष्मणराव किर्लोस्कर ने साइकिल रिपेयर की दुकान खोलकर कारोबार का नया अध्याय शुरू किया?

सारांश
Key Takeaways
- किर्लोस्कर ग्रुप की स्थापना 1888 में हुई थी।
- लक्ष्मणराव का पहला उत्पाद लोहे का हल था।
- कृषि क्षेत्र में उन्होंने क्रांति लाने का कार्य किया।
- किर्लोस्करवाड़ी भारत की दूसरी औद्योगिक टाउनशिप है।
- आज, यह समूह प्रमुख उद्योगों में से एक है।
नई दिल्ली, 19 जून (राष्ट्र प्रेस)। आदाजी के समय से पहले भारत में कुछ सीमित कारोबारी समूह थे, जिन्होंने अंग्रेजों के सामने स्वदेशी उत्पाद बनाने के स्वप्न को साकार किया। इनमें से एक प्रमुख नाम किर्लोस्कर ग्रुप का है।
किर्लोस्कर समूह की स्थापना लक्ष्मणराव काशीनाथ किर्लोस्कर ने की थी, जिनका जन्म 20 जून 1869 को महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव गुरलौहसुर में हुआ।
लक्ष्मणराव किर्लोस्कर का बचपन में पढ़ाई में मन नहीं लगता था, लेकिन मशीनों के प्रति उनकी गहरी रुचि थी। उन्होंने मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ आर्ट से मैकेनिकल ड्राइंग की शिक्षा ली और बाद में विक्टोरिया जुबली टेक्निकल इंस्टीट्यूट में शिक्षक के रूप में कार्य किया।
1888 में, अपने भाई रामुअन्ना के साथ मिलकर उन्होंने ‘किर्लोस्कर ब्रदर्स’ नाम से एक साइकिल की दुकान खोली, जो किर्लोस्कर ग्रुप की यात्रा का आरंभ बनी।
लक्ष्मणराव का मानना था कि कृषि उपकरणों को उपयोग के स्थान के अनुसार अनुकूल होना चाहिए। इसी सोच के साथ उन्होंने भारत का पहला लोहे का हल विकसित किया, जो किर्लोस्कर ग्रुप का पहला उत्पाद भी था।
शुरुआत में, किसानों ने लोहे के हल का विरोध किया, उनका मानना था कि यह मिट्टी को जहरीला बना देगा। लेकिन लक्ष्मणराव के दृढ़ संकल्प के चलते, उन्होंने दो साल बाद अपना पहला हल बेचने में सफलता पाई।
बाद में, यही हल भारत में कृषि क्रांति का प्रतीक बना।
लक्ष्मणराव ने जमशेदपुर के बाद भारत की दूसरी औद्योगिक टाउनशिप किर्लोस्करवाड़ी की स्थापना की।
जनवरी 1910 में, बेलगाम की नगरपालिका ने उन्हें वहां से हटने का आदेश दिया, लेकिन औंध के राजा ने उन्हें कुंडल रोड के पास 32 एकड़ बंजर भूमि दी, जहां किर्लोस्कर ब्रदर्स की नई फैक्ट्री बनी। इसके बाद किर्लोस्कर ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
आज, किर्लोस्कर ग्रुप भारत के प्रमुख कारोबारी समूहों में से एक है, जो पंप, इंजन, वाल्व और कंप्रेसर की इंजीनियरिंग और मैन्युफैक्चरिंग करता है।