क्या सलील चौधरी की पुण्यतिथि पर उनके संगीत का जादू फिर से जिंदा होगा?

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क्या सलील चौधरी की पुण्यतिथि पर उनके संगीत का जादू फिर से जिंदा होगा?

सारांश

सलील चौधरी, जिन्हें सलील दा के नाम से जाना जाता है, ने बिना किसी साधन और पारंपरिक शिक्षा के संगीत की दुनिया में अपनी एक नई पहचान बनाई। आइए जानते हैं उनके जीवन की महत्वपूर्ण बातें और उनके संगीत की अनमोल धुनों के बारे में।

Key Takeaways

  • सलील चौधरी ने बिना साधनों के अपनी प्रतिभा साबित की।
  • उनका संगीत आजादी के संघर्ष का प्रतीक है।
  • सलील दा की जोड़ी शैलेंद्र और गुलजार के साथ बेहद सफल रही।
  • उन्होंने 75 से अधिक हिंदी फिल्मों में संगीत दिया।
  • उनके गाने आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं।

नई दिल्ली, 4 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। फिल्म उद्योग में सलील दा के नाम से मशहूर सलील चौधरी के पास न तो कोई साधन था और न ही पारंपरिक संगीत शिक्षा। फिर भी उन्होंने पूरी दुनिया को अपनी धुनों पर नचाया। उन्होंने अपने भाई के साथ ऑर्केस्ट्रा में रहकर कई वाद्य यंत्र बजाना सीखा।

आज उनकी पुण्यतिथि पर हम सलील चौधरी के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं पर एक नजर डालते हैं।

संगीतकार सलील चौधरी का जन्म 19 नवंबर 1923 को पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के गाजीपुर गांव में हुआ। 5 सितंबर 1995 को उनका निधन 69 वर्ष की उम्र में हुआ। सलील दा ने न केवल हिंदी फिल्मों, बल्कि बंगाली और मलयालम फिल्मों के लिए भी संगीत रचा। उन्होंने 'मधुमती', 'दो बीघा जमीन', 'आनंद', और 'मेरे अपने' जैसी फ़िल्मों में संगीत दिया, जिन्हें बहुत सराहा गया।

अपने गीतों के माध्यम से उन्होंने आजादीमुंबई था, जहाँ वे डायरेक्टर बिमल रॉय द्वारा 'दो बीघा जमीन' के लिए संगीतकार के रूप में आमंत्रित हुए।

बिमल रॉय ने सलील दा के संगीत को पसंद करते हुए 'दो बीघा जमीन' का संगीत सलील चौधरी को सौंपा। 1953 में रिलीज़ हुई इस फिल्म के गाने सलील चौधरी को सलील दा बना दिया। इस फिल्म की सफलता के बाद, सलील दा और बिमल रॉय ने एक साथ कई हिट फिल्में दीं।

बाद में, सलील दा की जोड़ी शैलेंद्र के साथ जुड़ी, जिसने दर्शकों के लिए कई बेहतरीन गीत तैयार किए। गुलजार के साथ भी उनकी जोड़ी को बहुत पसंद किया गया। 1960 में 'काबुलीवाला' में उनकी जोड़ी ने दर्शकों के दिलों में एक गहरी छाप छोड़ी।

सलील दा को फिल्म मधुमती के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें 1988 में संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। 70 के दशक में, उन्हें मायानगरी से मोहभंग होने लगा और वे कोलकाता लौट आए। उन्होंने 75 से अधिक हिंदी फिल्मों में संगीत दिया।

सलील दा ने 'कोई होता अपना जिसको', 'जिंदगी... कैसी है पहेली हाय', 'कहीं दूर जब दिन ढल जाए', 'दिल तड़प तड़प के कह रहा है', 'सुहाना सफर और ये मौसम हंसी', 'मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने', 'जानेमन जानेमन, तेरे दो नयन', 'रजनीगंधा फूल तुम्हारे' जैसे गानों की धुन बनाई। उन्होंने 5 सितंबर 1995 को इस दुनिया को अलविदा कहा।

Point of View

बल्कि यह स्वतंत्रता संग्राम की भावना को भी उजागर करता था। इसे ध्यान में रखते हुए, हमें उनके योगदान को याद रखना चाहिए और उनके संगीत को आगे बढ़ाना चाहिए।
NationPress
04/09/2025

Frequently Asked Questions

सलील चौधरी का जन्म कब हुआ था?
सलील चौधरी का जन्म 19 नवंबर 1923 को पश्चिम बंगाल में हुआ था।
सलील चौधरी ने किस फिल्म के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता?
सलील चौधरी को फिल्म 'मधुमती' के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
सलील चौधरी का निधन कब हुआ?
सलील चौधरी का निधन 5 सितंबर 1995 को हुआ।
सलील चौधरी के प्रसिद्ध गाने कौन से हैं?
उनके प्रसिद्ध गानों में 'कोई होता अपना जिसको', 'जिंदगी... कैसी है पहेली हाय', और 'दिल तड़प तड़प के कह रहा है' शामिल हैं।
क्या सलील चौधरी ने मलयालम फिल्मों के लिए भी संगीत दिया?
जी हां, सलील चौधरी ने हिंदी फिल्मों के साथ-साथ मलयालम फिल्मों के लिए भी संगीत दिया।