क्या न्याय के देवता को मनाने के लिए इन शनि धाम में जाना चाहिए?

सारांश
Key Takeaways
- शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है।
- शनि की पूजा से जीवन की समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है।
- भारत में कई प्रसिद्ध शनि मंदिर हैं।
- शनि की साढ़े साती और ढैय्या के दौरान सावधानी बरतनी चाहिए।
- शनि देव की पूजा में काला तिल और तेल का महत्व है।
नई दिल्ली, १८ जून (राष्ट्र प्रेस)। वैदिक ज्योतिष के अनुसार किसी भी जातक की कुंडली में १२ भाव होते हैं, जिसमें नौ ग्रह अपनी स्थिति बनाते हैं। इनमें से राहु और केतु को छाया ग्रह माना गया है, जबकि शनि, सूर्य और मंगल को क्रूर ग्रहों के अंतर्गत रखा गया है। शुभ ग्रहों में बुध, चंद्रमा, गुरु और शुक्र शामिल हैं। शनि को न्याय का देवता माना गया है। यह विश्वास किया जाता है कि शनि जातक के जीवन में संघर्ष लाते हैं, लेकिन यदि जातक शनि के मार्ग का पालन करें और अपने को एक चरित्रवान और बेहतर इंसान बनाए रखें, तो शनिदेव उनकी जिंदगी को खरा सोना बना देते हैं।
शनि की साढ़े साती और ढैय्या के दौरान, या शनि की महादशा में जातक को बहुत सावधानी से रहना चाहिए। अंक ज्योतिष के अनुसार, शनि का अंक ८ है। शनि की मित्र राशि बुध और शुक्र है, जबकि गुरु को समान माना गया है। कुंडली के अनुसार, शनि देव का मकर और कुंभ राशि पर अधिकार है। तुला राशि शनि की उच्च राशि है। धनु और वृषभ राशि के जातकों पर भी शनि देव की कृपा होती है।
कुंडली में ग्रहों के गमन को समझना आवश्यक है। यहाँ सूर्य और चंद्रमा मार्गी होते हैं, जबकि राहु और केतु हमेशा वक्री रहते हैं। शनि, मंगल, बुध, गुरु और शुक्र समय के अनुसार दोनों स्थितियों में गमन करते हैं।
शनि देव के प्रति लोगों में एक भय हमेशा रहता है कि वह जातक का अनिष्ट करते हैं, जबकि यह विचार गलत है। शनि संघर्ष देते हैं, लेकिन साथ ही व्यक्ति को सोने की तरह निखारते भी हैं। शनि देव सूर्य देव और छाया के पुत्र हैं। उनका बड़ा भाई यम मृत्यु के देवता हैं। यम व्यक्ति के कर्मों का फल मृत्यु के बाद देते हैं, जबकि शनि जातक को इस जीवन में ही उसके कर्मों का फल देने के लिए जाने जाते हैं।
यदि आप शनि की साढ़े साती, ढैय्या या महादशा से गुजर रहे हैं, तो भारत में स्थित कुछ शनि मंदिरों में दर्शन करना चाहिए, जिससे आपके जीवन में चल रहे कष्टों से मुक्ति मिले। शनि देव की कृपा पाने के लिए महादेव और हनुमान जी की पूजा करना भी श्रेष्ठ है।
कहा जाता है कि शनि की अशुभ दृष्टि से जातक को आर्थिक परेशानियां, नौकरी में संकट, मान-सम्मान में गिरावट और कलेश का सामना करना पड़ता है।
हम आपको भारत के कुछ प्रसिद्ध शनि मंदिरों की जानकारी दे रहे हैं, जहां जाकर आप शनि देव की पूजा कर सकते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
देश का सबसे प्रसिद्ध मंदिर शनि शिंगणापुर है, जो महाराष्ट्र में स्थित है। इसे शनि देव का जन्म स्थान माना जाता है। यहाँ शनि देव की प्रतिमा लगभग पाँच फीट नौ इंच ऊँची है।
शनि तीर्थ क्षेत्र, असोला, फतेहपुर बेरी, यह मंदिर दिल्ली के महरौली में है। यहाँ शनि देव की सबसे बड़ी मूर्ति है, जो अष्टधातुओं से बनी है। यहाँ एक प्रतिमा में शनिदेव गिद्ध पर और दूसरी में भैंस पर सवार हैं। यहाँ मान्यता है कि शनि देव जागृत अवस्था में विराजमान हैं।
एक प्राचीन और चमत्कारिक मंदिर जूनी इंदौर में है। इसे दुनिया का सबसे पुराना शनि मंदिर माना जाता है। इस मंदिर में शनि देव का श्रृंगार तेल से नहीं, बल्कि सिंदूर से किया जाता है।
मध्य प्रदेश में ग्वालियर के नजदीक एंती गाँव में शनि देव का शनिचरा मंदिर है। यह सबसे प्राचीन त्रेतायुगीन शनि मंदिर है। यहाँ की प्रतिमा आसमान से गिरे एक उल्कापिंड से बनी है।
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में एक शनि मंदिर है, जो शनि धाम के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ आते ही भक्त भगवान शनि की कृपा प्राप्त करते हैं।
दिल्ली से १२८ किमी की दूरी पर कोसीकलां में शनिदेव का मंदिर है। इसे कोकिलावन धाम कहा जाता है। यहाँ की परिक्रमा करने से मनुष्य की सारी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन में प्राचीन शनि मंदिर स्थित है। यहाँ शनि देव के साथ-साथ अन्य नवग्रह भी हैं, इसलिए इसे नवग्रह मंदिर भी कहा जाता है।
दक्षिण भारत में स्थित यह मंदिर तिरुनल्लर में है, जो नवग्रह मंदिरों में से एक है। यहाँ भगवान शिव की पूजा करने से शनि ग्रह के सभी बुरे प्रभावों से मुक्ति मिलती है।
इसके अलावा, तेलंगाना राज्य के मेडक जिले में यरदनूर शनि मंदिर है, जहाँ शनि देव की २० फीट ऊँची प्रतिमा है। कर्नाटक के उडुपी में भी भगवान शनि का प्रसिद्ध मंदिर है।
गुजरात के भावनगर में सारंगपुर स्थित कष्टभंजन हनुमान मंदिर में हनुमान जी के साथ शनि देव की मूर्ति भी है।
शनि देव को काला तिल, तेल, काला वस्त्र और काली उड़द प्रिय हैं। शनि के प्रकोप से बचने के लिए जातक को शनि स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। शिवलिंग पर तिल चढ़ाने से भी शनि के कष्टों से मुक्ति मिलती है।