क्या थम गया एक इतिहास? शिबू सोरेन के निधन से झारखंडियत की आवाज़ क्यों शांत हो गई?

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क्या थम गया एक इतिहास? शिबू सोरेन के निधन से झारखंडियत की आवाज़ क्यों शांत हो गई?

सारांश

शिबू सोरेन का निधन केवल एक नेता का नहीं, बल्कि एक आदिवासी आंदोलन का अंत है। उनकी संघर्षों की कहानी और आदिवासी चेतना के लिए उनकी मेहनत आज भी प्रेरणा देती है। जानिए कैसे उन्होंने एक नई दिशा दी और झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया।

Key Takeaways

  • आदिवासी चेतना के लिए उनका योगदान अविस्मरणीय है।
  • उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की।
  • उनका जीवन संघर्ष और सादगी की मिसाल है।
  • वे केवल नेता नहीं, बल्कि एक आंदोलन थे।

रांची, 4 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। गुरुजी का निधन, गुरुजी अर्थात् शिबू सोरेन। उनके निधन के साथ एक इतिहास समाप्त हो गया। झारखंडियत की सबसे सशक्त आवाज अब शांति में है।

जब भी आदिवासी चेतना की चर्चा होगी, जब भी जनसंघर्षों का जिक्र होगा, शिबू सोरेन का नाम लिया जाएगा। सम्मान और गर्व के साथ। वे केवल एक नेता नहीं थे, बल्कि एक विचार और एक आंदोलन थे। उन्होंने दुःख को हथियार बनाया, संघर्ष को धर्म और सियासत को गरीबों की आवाज।

उनकी कहानी का आरंभ 11 अप्रैल 1944, नेमरा गांव, हजारीबाग (अब रामगढ़) से हुआ। मात्र 12 वर्ष की आयु में उनके पिता की हत्या कर दी गई थी। यह दुख उनके जीवन भर बना रहा। बालक शिबू ने प्रतिशोध का संकल्प लिया, लेकिन केवल अपने पिता के लिए नहीं, बल्कि पूरे आदिवासी समाज की पीड़ा के लिए। किशोरावस्था में ही उन्होंने लड़ाई शुरू की। कानूनी, सामाजिक, और राजनीतिक लड़ाई।

उन्होंने धान काटो आंदोलन चलाया। महिलाएं खेतों में जातीं और पुरुष तीर-धनुष लेकर पहरा देते। यह केवल खेती नहीं थी, यह इंकलाब था। पुलिस ने उन पर कार्रवाई की, लेकिन वे कभी डरे नहीं। उन्होंने ‘सोनोत संताल’ संगठन बनाया और आदिवासी चेतना को दिशा दी। उन्हें 'दिशोम गुरु' का नाम मिला, जिसका अर्थ है देश का नेता

फिर 4 फरवरी 1972 को धनबाद में एक बड़ी सभा से झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन हुआ। शिबू सोरेन महासचिव बने। जेएमएम एक जनआंदोलन बन गया, जो दक्षिण बिहार से लेकर बंगाल और ओडिशा तक फैल गया।

उन्होंने कई बार जेलयात्राएं की, लेकिन कभी झुके नहीं। गुरुजी की आवाज थी, जो जुल्मों के आगे गूंजती थी। पिछले 50 सालों में झारखंड ने ऐसा कोई अन्य नेता नहीं देखा।

गुरुजी ने 1980 में दुमका से पहली बार संसद में कदम रखा। 2000 में झारखंड एक अलग राज्य बना और शिबू सोरेन का सपना साकार हुआ। उन्होंने 2005, 2008 और 2009 में तीन बार मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।

उनका जीवन सादगी और संघर्ष की एक मिसाल है। वे हमेशा मिट्टी से जुड़े रहे।

Point of View

जो हमें उनके योगदान को याद करने का अवसर देता है।
NationPress
04/08/2025

Frequently Asked Questions

शिबू सोरेन का असली नाम क्या था?
शिबू सोरेन का असली नाम शिव शंकर सोरेन था।
शिबू सोरेन ने कब झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की?
शिबू सोरेन ने 4 फरवरी 1972 को झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की।
शिबू सोरेन को किस नाम से जाना जाता था?
उन्हें दिशोम गुरु के नाम से जाना जाता था।
उनका जन्म कब हुआ था?
उनका जन्म 11 अप्रैल 1944 को हुआ था।
वे कितनी बार मुख्यमंत्री बने?
वे तीन बार मुख्यमंत्री बने: 2005, 2008, और 2009 में।