क्या बिहार में एनडीए की अप्रत्याशित जीत होने वाली है? : सिद्धार्थ नाथ सिंह

सारांश
Key Takeaways
- एनडीए की जीत की संभावना बढ़ी है।
- तेजस्वी यादव के ईवीएम पर सवाल उठाने की आदत।
- कांग्रेस की स्थिति कमजोर हुई है।
- 'आई लव मोहम्मद' विवाद का कोई प्रभाव नहीं।
- प्रशांत किशोर की भूमिका सीमित हो गई है।
पटना, 5 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री एवं भाजपा नेता सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा है कि राज्य में एनडीए की अप्रत्याशित जीत होने के संकेत मिल रहे हैं।
सिद्धार्थ नाथ सिंह ने राष्ट्र प्रेस से एक विशेष बातचीत में कहा कि बिहार में एनडीए के लिए माहौल अत्यंत सकारात्मक है और इस बार की जीत अप्रत्याशित रूप से बड़ी होने की संभावना है। हर चुनाव में प्रतिस्पर्धा होती है, लेकिन विपक्ष को अपनी हार का ठीकरा फोड़ने के लिए कोई न कोई बहाना चाहिए। तेजस्वी यादव को हमेशा ईवीएम पर सवाल उठाने की आदत है, क्योंकि वो हर बार हारते हैं। जब ईवीएम पर सवाल नहीं उठा सकते, तो अब 'वोट चोरी' का बहाना बना रहे हैं।
उन्होंने बताया कि कांग्रेस अब मुद्दों से भटक चुकी है। अब कांग्रेस को बांग्लादेशी वोट की आवश्यकता है। वे विदेशी वोट के जरिए जीतना चाहते हैं। जबकि, फ्री एंड फेयर चुनाव में जीत उन्हीं की होती है, जो भारत के नागरिकों के वोट पर भरोसा करते हैं। यह एसआईआर भारत के नागरिकों के वोट से तय होता है।
‘आई लव मोहम्मद’ विवाद पर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए भाजपा नेता ने कहा कि इसका बिहार के चुनाव पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह विवाद यूपी में शुरू हुआ और वहीं समाप्त हो गया। राजनीतिक रूप से यह मुद्दा कभी भी महत्वपूर्ण नहीं रहा। कोई भी 'आई लव मोहम्मद' कहने में आपत्ति नहीं रखता, लेकिन जब इसे त्योहारों के बीच एक षड्यंत्र के तौर पर फैलाने की कोशिश की गई, तो पुलिस ने उसे नियंत्रित कर लिया।
बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर की भूमिका पर पूछे गए सवाल पर सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि इस चुनाव में असली टक्कर तेजस्वी यादव और एनडीए के बीच है। प्रशांत किशोर चुनावी मैदान में नहीं, बल्कि किनारे पर बैठे मजा लेने आए हैं। वे अब 'प्रशांत केजरीवाल' बन चुके हैं।
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के बिहार में संभावित प्रभाव पर उन्होंने कहा कि ओवैसी का प्रभाव अब समाप्त हो चुका है। काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है। बिहार की जनता अब विकास, रोजगार और स्थिर शासन के मुद्दों पर वोट दे रही है, न कि धार्मिक या जातिगत नारों पर।