क्या टियर-2 और 3 शहर भारत के इंजीनियरिंग वर्कफोर्स को आकार देंगे?
 
                                सारांश
Key Takeaways
- टियर-2 और टियर-3 शहरों की बढ़ती भूमिका
- 2028 तक 35% योगदान का अनुमान
- नए तकनीकी संस्थान और स्किलिंग हब का विकास
- एआई और इलेक्ट्रिक व्हीकल में बढ़ता अवसर
- इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स की बढ़ती संख्या
नई दिल्ली, 13 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के टियर-2 और टियर-3 शहर अगले कुछ वर्षों में देश के इंजीनियरिंग वर्कफोर्स को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं।
एनएलबी सर्विसेज द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के मुताबिक, पारंपरिक महानगरों के बाहर नए संस्थान, टेक्नोलॉजी पार्क और स्किलिंग हब तेजी से विकसित हो रहे हैं। अनुमान है कि 2028 तक भारत के एडवांस्ड इंजीनियरों में टियर-2 और टियर-3 शहरों का योगदान लगभग 35 प्रतिशत तक पहुँच जाएगा।
जयपुर, वडोदरा, कोयंबटूर, कोच्चि, पुणे और इंदौर जैसे शहर कम लागत और उच्च प्रभाव वाली प्रतिभाओं की खोज कर रहे उद्यमों के लिए आकर्षक गंतव्य बन रहे हैं।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत हर वर्ष लगभग 15 लाख इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स तैयार करता है, जिनमें मैकेनिकल, सिविल, आईटी, सॉफ्टवेयर और मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
हालांकि, वर्तमान में इनमें से केवल 45 प्रतिशत ही उद्योग मानकों को पूरा करते हैं, जबकि 60-72 प्रतिशत को व्यापक रूप से रोजगार योग्य माना जाता है।
एआई, डेटा साइंस, इलेक्ट्रिक व्हीकल और सेमीकंडक्टर जैसे नए युग के क्षेत्रों में कौशल की कमी एक चुनौती बनी हुई है।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था का भविष्य एसटीईएम-लेड इनोवेशन से संचालित होगा।
आने वाले 70 प्रतिशत नौकरियों में एसटीईएम कौशल की आवश्यकता होने की उम्मीद है, ऐसे में एआई, मशीन लर्निंग, डेटा इंजीनियरिंग, एम्बेडेड सिस्टम और नैतिक एआई शासन जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता महत्वपूर्ण होगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को 2026 तक 10 लाख एआई-ट्रेन्ड इंजीनियरों की आवश्यकता होगी, जबकि वर्तमान आपूर्ति इस मांग का केवल 20 प्रतिशत ही पूरा कर पाती है।
इसी तरह, ईवी इंडस्ट्री 30-40 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रही है। इस इंडस्ट्री को 2030 तक बैटरी टेक्नोलॉजी, ऑटोमोटिव इलेक्ट्रॉनिक्स और सस्टेनेबल डिजाइन जैसे क्षेत्रों में 10-20 लाख इंजीनियरों की आवश्यकता होने का अनुमान है।
भारत के पहले स्वदेशी 32-बिट माइक्रोप्रोसेसर, विक्रम 3201 के आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम के बाद सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री भी नए अवसर प्रस्तुत कर रही है।
देश को चिप डिजाइन, प्रोसेस इंजीनियरिंग और टेस्टिंग के लिए हर वर्ष 25,000-30,000 स्किल्ड इंजीनियरों की आवश्यकता होने की उम्मीद है।
 
                     
                                             
                                             
                                             
                                             
                             
                             
                             
                            