क्या कमल किशोर कपूर हर किरदार में कमाल थे? रणबीर कपूर से भी है खास रिश्ता

सारांश
Key Takeaways
- कमल किशोर कपूर ने हिंदी सिनेमा में खलनायक की भूमिका को नई पहचान दी।
- उनका परिवार रणबीर कपूर, करिश्मा और करीना कपूर जैसे कलाकारों से जुड़ा है।
- उन्होंने 500 से अधिक फिल्मों में काम कर सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- कमल कपूर का जन्म पेशावर में हुआ था और बाद में उनका परिवार मुंबई आया।
- उनकी सादगी और समर्पण ने उन्हें सभी के दिलों में एक विशेष स्थान दिलाया।
मुंबई, 1 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। क्या कमल किशोर कपूर को आप जानते हैं? 'डॉन' का 'नारंग' या 'दीवार' का 'आनंद वर्मा', भूरी आंखों वाले इस खलनायक को पर्दे पर देख दर्शक दंग रह जाते थे। 2 अगस्त 2010 को हिंदी सिनेमा ने इस अद्वितीय सितारे को खो दिया, जिन्होंने अपने बहुआयामी अभिनय से किरदारों को अमर बना दिया। आज अभिनेता कमल कपूर की पुण्यतिथि है।
सिने प्रेमी उन्हें उनके अद्भुत अभिनय और व्यक्तिगत जीवन के लिए भी याद करते हैं। पृथ्वीराज कपूर के मौसेरे भाई और सोनाली बेंद्रे के नाना ससुर कमल कपूर का रणबीर कपूर, करिश्मा और करीना कपूर से भी खास संबंध था।
कपूर परिवार पर एक किताब लिखी गई है, जिसका शीर्षक है 'द कपूर्स- द फर्स्ट फैमिली ऑफ बॉलीवुड', जिसे लेखिका मधु जैन ने लिखा है। इस किताब में कमल कपूर का भी उल्लेख मिलता है।
कमल कपूर का जन्म पेशावर (अब पाकिस्तान) में हुआ था, लेकिन भारत के बंटवारे के बाद उनका परिवार मुंबई आ गया। यहीं से उनकी सिने यात्रा शुरू हुई, जो लगभग पांच दशकों तक चली। उन्होंने 500 से अधिक फिल्मों में काम किया, जिसमें हिंदी, गुजराती और पंजाबी सिनेमा शामिल हैं। कमल ने अपने करियर की शुरुआत एक नायक के रूप में की, लेकिन उनकी असली पहचान तब बनी जब उन्होंने नकारात्मक किरदारों को अपनाया। उनके खलनायक के रोल इतने प्रभावी थे कि दर्शक उनकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाते थे।
‘डॉन’, ‘आदमी और इंसान’ जैसी फिल्मों में उनके किरदार आज भी याद किए जाते हैं। कमल कपूर को पहला बड़ा ब्रेक उनके मौसेरे भाई पृथ्वीराज कपूर ने दिया था। साल 1944 में पृथ्वीराज ने अपने पृथ्वी थिएटर की स्थापना की, जहाँ उन्होंने कमल को मशहूर नाटक ‘दीवार’ में एक अंग्रेज ऑफिसर का किरदार निभाने का मौका दिया। यह रोल उनके लिए महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। पृथ्वीराज के मार्गदर्शन में कमल ने अभिनय की बारीकियां सीखी और जल्द ही फिल्मों में अपनी जगह बनाई।
1946 में आई 'दूर चलें' फिल्म से करियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता ने अभिनय जगत में खास मुकाम हासिल किया। उन्होंने 40 और 50 के दशक में हीरो वाले रोल से हिंदी सिनेमा में अपने सफर की शुरुआत की थी, लेकिन उन्हें काम मिलना बंद हो गया था। एक इंटरव्यू में उन्होंने खुद बताया था कि काम न मिलने और बची-खुची फिल्मों के भी फ्लॉप होने से वह सड़क पर आ गए थे। उनके करियर में संकट आया और वह निराश हो गए थे।
इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों के निर्माण का विचार किया और 1951 में 'कश्मीर' नाम की एक फिल्म बनाई जो असफल रही। उन्होंने बताया कि उनका करियर दिशाहीन हो गया था और उन्हें अपनी कार तक बेचनी पड़ी थी। अंत में, उन्होंने नकारात्मक किरदार निभाने का रास्ता अपनाया, जो उनके लिए सफल साबित हुआ।
कमल कपूर के खलनायक करियर की शुरुआत साल 1965 में रिलीज हुई फिल्म 'जौहर महमूद इन गोवा' से हुई, जो एक बड़ी हिट साबित हुई। इसके बाद उनके पास काम की बाढ़ आ गई और उन्होंने 'जौहर इन बॉम्बे', 'जब जब फूल खिले', 'राजा और रंक', 'दस्तक', 'पाकीजा', 'पापी', 'चोर मचाए शोर', 'फाइव राइफल्स', 'दो जासूस', 'खेल खेल में', 'मर्द', 'तूफान' जैसी फिल्मों में अपनी छाप छोड़ी।
कमल कपूर का निजी जीवन भी उनकी फिल्मी दुनिया जितना रोचक था। उनकी बेटी का विवाह मशहूर फिल्म निर्माता रमेश बहल से हुआ, जिनके बेटे गोल्डी बहल आज बॉलीवुड के जाने-माने निर्माता-निर्देशक हैं। गोल्डी का विवाह अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे से हुआ, जिससे कमल कपूर सोनाली के नाना ससुर बने। इस तरह, उनका परिवार बॉलीवुड के कई बड़े नामों से जुड़ा। वह रिश्ते में रणबीर कपूर, करिश्मा कपूर और करीना कपूर के परदादा हुए।
कमल की सादगी और समर्पण ने उन्हें सहकर्मियों और परिवार में सम्मान दिलाया। कमल कपूर का अभिनय केवल पर्दे तक सीमित नहीं था। वे अपने किरदारों में ऐसी जान डालते थे कि दर्शकों को लगता था कि वे असल जिंदगी में भी वैसे ही हैं। उनकी भारी आवाज, प्रभावशाली व्यक्तित्व और भावनाओं को व्यक्त करने की कला ने उन्हें हर दौर में प्रासंगिक बनाए रखा। चाहे वह खलनायक की क्रूरता हो या नायक की सज्जनता, कमल हर रोल में फिट बैठते थे।