क्या मौसम बदलने पर शीतपित्त की समस्या बढ़ जाती है? जानें आयुर्वेद में समाधान

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क्या मौसम बदलने पर शीतपित्त की समस्या बढ़ जाती है? जानें आयुर्वेद में समाधान

सारांश

क्या आप भी मौसम बदलने पर परेशानियों का सामना करते हैं? जानें शीतपित्त के कारण और आयुर्वेदिक उपचारों के बारे में।

Key Takeaways

  • पित्ती एक आम समस्या है, विशेषकर मौसम बदलने पर।
  • आयुर्वेद में इसके लिए कई घरेलू उपचार उपलब्ध हैं।
  • पित्ती की समस्या को नियंत्रित करने के लिए आहार में परिवर्तन आवश्यक है।
  • सही जड़ी-बूटियों का सेवन इस समस्या को कम कर सकता है।
  • चिकित्सकीय सलाह लेना महत्वपूर्ण है, यदि समस्या बनी रहे।

नई दिल्ली, २५ नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। जब मौसम में परिवर्तन होता है, तो किसी भी प्रकार की एलर्जी होना आम बात है। लेकिन कुछ व्यक्तियों को मौसम बदलते ही शरीर पर लाल चकत्ते, खुजली और जलन की समस्या का सामना करना पड़ता है।

इससे शरीर पर निशान बनने लगते हैं, जो पित्ती के लक्षण होते हैं। कभी-कभी पित्ती कुछ घंटों में अपने आप ठीक हो जाती है, लेकिन कुछ लोगों को यह कई दिनों तक परेशान करती है।

आयुर्वेद के अनुसार, पित्ती से राहत पाने के लिए कई घरेलू उपचार सुझाए गए हैं, जो रोगियों के लिए मददगार साबित हो सकते हैं। आमतौर पर पित्ती को शीतपित्त कहा जाता है। आयुर्वेद में यह माना जाता है कि पित्ती का कारण रक्त की अशुद्धि और शरीर में पित्त दोष का असंतुलन होता है। जब ये दोनों चीजें बढ़ जाती हैं, तो मौसम बदलने पर पित्ती की समस्या उत्पन्न हो सकती है, जैसे ठंडी हवा में रहना, अधिक तैलीय या मसालेदार भोजन करना या किसी प्रकार की एलर्जी होना।

यदि पित्ती कई दिनों तक बनी रहती है, तो इसे चिकित्सकीय भाषा में क्रॉनिक कहा जाता है। इस स्थिति में पूरा शरीर पित्ती से प्रभावित हो जाता है और खुजली तथा सूजन से व्यक्ति परेशान हो जाता है। ऐसी स्थिति में चिकित्सकीय सलाह से ही नियंत्रण पाया जा सकता है, लेकिन यदि किसी को पित्ती की समस्या है, तो कुछ परहेज, आहार में सुधार और आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का सेवन इसे कम करने में मदद कर सकता है।

पित्ती के प्रारंभिक लक्षणों में राहत पाने के लिए हरिद्रा खंड, गुडूची घनवटी, नीम घनवटी, और आंवला चूर्ण का सेवन आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह पर किया जा सकता है। ये जड़ी-बूटियां पित्त को शांत करने में सहायक होती हैं, जिससे एलर्जी की संभावना कम होती है और रक्त शुद्ध होता है। इसके अलावा, शरीर में विटामिन सी की भरपूर मात्रा से सूजन में कमी आती है।

इसके साथ, पित्ती में गिलोय का जूस, नीम के पत्तों का पानी, और हरे धनिए का पानी भी लाभकारी होते हैं। पित्ती के समय आहार में बदलाव करना आवश्यक है। पित्ती के दौरान अधिक ठंडा खाना या पीना नहीं चाहिए। दूध और दुग्ध उत्पादों से परहेज करें। मछली और अन्य मांसाहारी चीजें भी पित्ती में हानिकारक होती हैं। इसके अलावा, चीनी, मसालेदार, नमकीन, और खट्टे खाद्य पदार्थों से भी बचें। ये सभी चीजें पित्ती को बढ़ा सकती हैं।

Point of View

यह स्पष्ट है कि मौसम के परिवर्तन से त्वचा संबंधी समस्याएं बढ़ सकती हैं, और आयुर्वेद में इसके समाधान पर ध्यान दिया जाना चाहिए। शीतपित्त जैसी समस्याओं के प्रति जागरूकता और उचित उपचार आवश्यक हैं।
NationPress
25/11/2025

Frequently Asked Questions

पित्ती के लक्षण क्या हैं?
पित्ती के लक्षणों में लाल चकत्ते, खुजली, और जलन शामिल हैं।
पित्ती के लिए आयुर्वेदिक उपचार क्या हैं?
हरिद्रा खंड, गुडूची घनवटी, नीम घनवटी, और आंवला चूर्ण का सेवन किया जा सकता है।
पित्ती होने पर क्या खाना चाहिए?
पित्ती के दौरान ठंडा खाना या पीना नहीं चाहिए और तैलीय भोजन से परहेज करें।
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