क्या गोपबंधु दास ने समाज के लिए अपना सर्वस्व अर्पित किया?

सारांश
Key Takeaways
- गोपबंधु दास का जीवन सामाजिक सुधार का प्रतीक है।
- उन्होंने शिक्षा के माध्यम से समाज में बदलाव लाने का प्रयास किया।
- उनका योगदान आज भी ओडिशा में याद किया जाता है।
- उन्होंने छुआछूत और विधवा विवाह जैसे मुद्दों पर कार्य किया।
- गोपबंधु दास का योगदान राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण है।
नई दिल्ली, 16 जून (राष्ट्र प्रेस)। गोपबंधु दास एक अत्यंत प्रभावशाली सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, सुधारक, पत्रकार, कवि और निबंधकार थे। 'उत्कलमणि' या 'ओडिशा रत्न' के नाम से प्रसिद्ध गोपबंधु ने अपनी 50 वर्षसम्मान के साथ याद किया जाता है।
गोपबंधु दास का जन्म 9 अक्टूबर 1877 को ओडिशा के पुरी जिले के सुआंडो में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम दैत्री दाश और माता का नाम स्वर्णमयी देवी था। कम उम्र में ही उनके माता-पिता का निधन हो गया। प्रारंभिक शिक्षा गांव के एक स्कूल में पूरी करने के बाद, वे पास के मीडिल स्कूल पहुंचे। 1893 में पुरी के जिला स्कूल में उनका नामांकन हुआ। वहाँ वे शिक्षक रामचंद्र दास से बहुत प्रभावित हुए, जो न केवल शिक्षा देते थे, बल्कि राष्ट्रवादी विचारों के प्रति भी जागरूक थे। यहीं से गोपबंधु में सामाजिक चेतना जागृत हुई।
उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए कटक के रेवेन शॉ कॉलेज में दाखिला लिया और स्थानीय पत्रिकाओं जैसे इंद्रधनु और बिजुली के लिए लिखना शुरू किया। अपनी कविताओं के लिए वे प्रसिद्ध होने लगे। एक बार उन्हें अपनी एक व्यंग्यात्मक कविता के लिए कॉलेज में दंडित किया गया, लेकिन उन्होंने माफी नहीं मांगी।
कॉलेज के दिनों में, उन्होंने अपने दोस्तों ब्रज सुंदर दास और लोकनाथ पटनायक के साथ 'कर्तव्य बोधिनी समिति' की स्थापना की, जहाँ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा होती थी। 1903 में उन्होंने 'उत्कल सम्मेलन' में भाग लिया, जहाँ उन्होंने मधुसुदन दास के उस प्रस्ताव का विरोध किया, जिसमें ओडिया बोलने वाले क्षेत्रों को बंगाल प्रेसिडेंसी में शामिल करने की बात कही गई थी।
सामाजिक कार्यों में व्यस्तता के कारण, वह पहले प्रयास में बीए की परीक्षा पास नहीं कर सके, लेकिन दूसरे प्रयास में सफल हुए। इस दौरान, उनके नवजात बच्चे का निधन हो गया। गोपबंधु की शादी 12 वर्षआप्ति से हुई थी। बच्चे के निधन के समय, वह बाढ़ से प्रभावित लोगों की सेवा में लगे थे।
उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से एमए और कानून की डिग्री प्राप्त की। इसके साथ ही, उन्होंने उड़िया लोगों को शैक्षणिक रूप से सशक्त बनाने के लिए रात्रि पाठशाला खोली। 28 वर्ष3 बेटों
गोपबंधु ने शिक्षक के रूप में करियर की शुरुआत की, इसके बाद वे वकालत में चले गए। पुरी और कटक उनके कार्यस्थल रहे। 1909 में उन्हें मयूरभंज राजघराने का वकील बनाया गया।
हालांकि, कानून का क्षेत्र उन्हें पसंद नहीं आया और 1909पुरी के नजदीक सखीगोपाल में एक स्कूल खोला, जिसे अब 'सत्यबादी उच्च विद्यालय' के नाम से जाना जाता है। यहाँ उदारवादी शिक्षा दी जाती थी।
उनका मानना था कि स्वतंत्रता और कर्तव्य को समझने के लिए लोगों का शिक्षित होना आवश्यक है। इस स्कूल में सभी जातियों के छात्र एक साथ पढ़ते थे, जो उस समय समाज सुधार की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण पहल थी। शिक्षा के माध्यम से, वह छात्रों में राष्ट्रवादी विचार और मानवता की सेवा की भावना जगाने का प्रयास करते थे। 1914कलकत्ता विश्वविद्यालय और 1917पटना विश्वविद्यालय से मान्यता मिली और 19211926
बाद में, 19171920'उत्कल प्रदेश कांग्रेस' के अध्यक्ष बने, इस पद पर वह 1928
गोपबंधु पत्रकारिता के क्षेत्र में भी सक्रिय रहे। 192119221924'सत्यबादी' पत्रिका और 'द समाज' जैसे अखबारों की शुरुआत की। 'द समाज' को साप्ताहिक अखबार के रूप में शुरू किया गया था, जो 1927
काराकबिता, बंदिरा आत्मकथा, दास गोपबंधु आदि उनकी प्रमुख रचनाएं हैं।
महज 50 वर्षछुआछूत, विधवा विवाह, शिक्षा, महिला शिक्षा, और गरीबी उन्मूलन के लिए उनके कार्यों के लिए ओडिशा में उन्हें आज भी याद किया जाता है। 17 जून 1928लाहौर