क्या हिमालयी राज्यों में पेड़ों की कटाई पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख है?

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क्या हिमालयी राज्यों में पेड़ों की कटाई पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख है?

सारांश

हिमालयी राज्यों में पेड़ों की अवैध कटाई और उसके पर्यावरणीय प्रभाव पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त कदम उठाए हैं। क्या सरकार समय पर जवाब दे पाएगी?

Key Takeaways

  • सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख पेड़ों की अवैध कटाई के खिलाफ है।
  • सरकार को 17 सितंबर तक जवाब देना है।
  • हिमालयी क्षेत्रों में भूस्खलन और प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है।
  • पर्यावरण की रक्षा के लिए न्यायपालिका की भूमिका महत्वपूर्ण है।
  • याचिका में अन्य हिमालयी राज्यों के मामलों को जोड़ने का आग्रह किया गया है।

नई दिल्ली, ८ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिमालयी राज्यों में पेड़ों की अवैध कटाई और इसके परिणामस्वरूप हो रहे भूस्खलन और वनों के नुकसान को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। इस मामले में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए, कोर्ट ने केंद्र सरकार, हिमाचल प्रदेश सरकार और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने सभी को १७ सितंबर तक जवाब पेश करने के लिए कहा है।

सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी आर गवई ने पर्यावरणीय स्थिति को लेकर चिंता व्यक्त की और कहा, "एक दक्षिण भारतीय फिल्म 'पुष्पा' में रक्तचंदन की लकड़ी से संबंधित जो दृश्य प्रस्तुत किया गया था, वैसा ही वीडियो हमने इस मामले में भी देखा है, जिसमें पानी में लकड़ियां तैरती हुई दिखाई दे रही हैं। यह एक गंभीर स्थिति है।"

याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि हिमालयी क्षेत्रों में तेजी से पेड़ों की कटाई हो रही है, जिससे न केवल वनों को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि भूस्खलन और प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी बढ़ गया है।

सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट को जानकारी दी कि उन्होंने हाल ही में पर्यावरण सचिव से इस मुद्दे पर चर्चा की है और मुख्य सचिव ने हिमालयी राज्यों के मुख्य सचिवों से भी बातचीत की है। उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार जल्द ही इस पर रिपोर्ट पेश करेगी।

याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में पेड़ों की कटाई और भूस्खलन पर स्वतः संज्ञान लिया था। उन्होंने अनुरोध किया कि इस मामले को अन्य हिमालयी राज्यों में वन कटाई से संबंधित स्वतः संज्ञान मामलों के साथ जोड़कर एक साथ सुनवाई की जाए।

मुख्य न्यायाधीश ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, "पहले ५५ पेड़ प्रजातियों को संरक्षित श्रेणी में रखा गया था, जिनकी कटाई पर प्रतिबंध था। लेकिन नई अधिसूचना ने संरक्षित प्रजातियों की संख्या कम कर दी है।"

सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को गंभीर मानते हुए सभी संबंधित पक्षों को जवाब देने का समय दिया है और अगली सुनवाई १७ सितंबर को होगी।

यह मामला देश के पर्यावरण और हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा से संबंधित है, जिस पर सर्वोच्च अदालत ने अब पैनी नजर रखनी शुरू कर दी है।

Point of View

बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट की इस पहल से यह स्पष्ट होता है कि पर्यावरण की रक्षा के लिए न्यायपालिका का कर्तव्य कितना महत्वपूर्ण है।
NationPress
09/09/2025

Frequently Asked Questions

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में क्या कदम उठाए हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने पेड़ों की अवैध कटाई के खिलाफ नोटिस जारी किया है और सभी संबंधित पक्षों को 17 सितंबर तक जवाब देने का निर्देश दिया है।
क्या सरकार ने इस मुद्दे पर कोई कार्रवाई की है?
सरकार ने पर्यावरण सचिव से इस मुद्दे पर चर्चा की है और भरोसा दिलाया है कि जल्द ही रिपोर्ट पेश की जाएगी।
इस मुद्दे का पर्यावरण पर क्या प्रभाव है?
पेड़ों की कटाई से न केवल वनों को नुकसान हो रहा है, बल्कि भूस्खलन और प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी बढ़ गया है।