क्या 8वीं शताब्दी में बना ‘हर’ और ‘हरि’ का अद्भुत मंदिर सुनामी से भी अछूता रहा?

सारांश
Key Takeaways
- शोर मंदिर 8वीं शताब्दी में बना है।
- यह भगवान शिव और विष्णु को समर्पित है।
- सुनामी ने इसे कोई नुकसान नहीं पहुँचाया।
- यह द्रविड़ वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है।
- 1984 में इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।
चेन्नई, 28 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। सावन का पवित्र महीना आरंभ हो चुका है और भारत के विभिन्न शिवालयों में 'हर हर महादेव' और 'बोल बम' का उद्घोष सुनाई दे रहा है। भोलेनाथ के अनुयायी जल लेकर शिव मंदिरों की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। तमिलनाडु के महाबलीपुरम में स्थित 'शोर मंदिर' एक ऐसा अनूठा तीर्थ स्थल है, जहाँ आस्था, इतिहास और आश्चर्य का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह मंदिर 8वीं शताब्दी में भगवान शिव (हर) और भगवान विष्णु (हरि) के सम्मान में निर्मित किया गया था।
समुद्र तट पर स्थित इस मंदिर की भव्यता और द्रविड़ वास्तुकला इसे विश्व स्तर पर प्रसिद्ध बनाती है। तमिलनाडु पर्यटन विभाग के अनुसार, शोर मंदिर दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है। इसे 'समुद्र तट का मंदिर' भी कहा जाता है। इसे पल्लव वंश के राजा राजसिम्हा (नरसिंहवर्मन द्वितीय) के शासनकाल में बनाया गया था, जो द्रविड़ वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है।
मंदिर परिसर में तीन गर्भगृह हैं, जिनमें बीच में भगवान विष्णु का मंदिर और दोनों किनारों पर भगवान शिव के मंदिर हैं। यह मंदिर कटे हुए पत्थरों और ग्रेनाइट ब्लॉकों से निर्मित है और इसकी पिरामिडनुमा कुटीना जैसी मीनार इसकी अनोखी बनावट को दर्शाती है।
शोर मंदिर की कहानी भी बेहद रोचक है। यह मंदिर कई वर्षों तक रेत के नीचे दबा रहा। वर्ष 2004 की भयंकर सुनामी, जिसने तटीय क्षेत्रों को बर्बाद कर दिया, ने भी इस मंदिर पर कोई प्रभाव नहीं डाला।
कहा जाता है कि यह मंदिर मार्को पोलो द्वारा वर्णित सात पैगोडा में से एक है। ऐसी मान्यता है कि इस तट पर स्थित सात मंदिरों में से छह अभी भी समुद्र में डूबे हुए हैं और शोर मंदिर इस श्रृंखला का अंतिम बचे हुए मंदिर है।
यूनेस्को ने इसे 1984 में विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया। पल्लव राजाओं द्वारा 7वीं और 8वीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर समूह में रथों के आकार के मंदिर, गुफा अभयारण्य, और 'गंगा अवतरण' जैसी नक्काशी शामिल हैं।
हजारों मूर्तियों से सजा यह मंदिर हर और हरि की महिमा को दर्शाता है। महाबलीपुरम की यात्रा बिना शोर मंदिर के दर्शन के अधूरी मानी जाती है। यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि अपनी ऐतिहासिक और स्थापत्य सुंदरता के लिए भी पर्यटकों को आकर्षित करता है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने मंदिर को क्षति से बचाने के लिए समुद्र तट के चारों ओर ब्रेक-वाटर दीवार का निर्माण किया है। शोर मंदिर के आसपास के क्षेत्र का सौंदर्यीकरण किया गया है। एएसआई की बागवानी शाखा ने शोर मंदिर के चारों ओर 10 एकड़ से अधिक भूमि पर लॉन तैयार किया है।