क्या 'स्वदेशी आंदोलन' की चिंगारी ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी?

सारांश
Key Takeaways
- स्वदेशी आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- महात्मा गांधी ने 22 अगस्त 1921 को विदेशी कपड़ों का विरोध किया।
- यह आंदोलन आर्थिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक बना।
- खादी को अपनाने से भारतीय समाज में एकता और आत्मविश्वास बढ़ा।
- स्वदेशी भावना ने भारतीय उद्योगों को सशक्त किया।
नई दिल्ली, 21 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। '1857 का विद्रोह' हो या 'असहयोग आंदोलन', 'भारत छोड़ो आंदोलन' या 'स्वदेशी आंदोलन', ये सभी पल भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण रहे हैं, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को हिला कर रख दिया। इस आंदोलन ने केवल आजादी की लड़ाई को तेज गति दी, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत की नींव को भी कमजोर किया।
स्वदेशी आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महात्मा गांधी ने 22 अगस्त, 1921 को विदेशी कपड़ों का विरोध करते हुए स्वदेशी का नारा उठाया।
यह घटना न केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ एक प्रतीकात्मक विरोध थी, बल्कि भारतीयों में आत्मसम्मान और स्वदेशी वस्तुओं के प्रति प्रेम जगाने का एक महत्वपूर्ण कदम भी थी। यह ऐतिहासिक क्षण स्वतंत्रता संग्राम में स्वदेशी भावना को प्रज्वलित करने का प्रतीक बन गया, जिसने आजादी के मतवालों में उत्साह भरा।
संस्कृति मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, 22 से 31 जुलाई 1921 के बीच जब 'असहयोग आंदोलन' अपने चरम पर था, उस दौरान महात्मा गांधी ने बंबई (वर्तमान मुंबई) में कई सभाओं को संबोधित किया। उन्होंने स्वदेशी का समर्थन किया और विदेशी कपड़ों के उपयोग को पाप बताया। गांधीजी ने लोगों से अपील की कि विदेशी कपड़ों के उपयोग से उनके साथी देशवासी भुखमरी का शिकार होते हैं और ब्रिटिश नीतियां जानबूझकर भारतीय उद्योगों को नष्ट कर रही हैं।
महात्मा गांधी ने खादी के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि भारतीय कपड़े पहनने से गरीब वर्गों का आर्थिक सशक्तीकरण होगा और खादी से लाखों लोगों को रोजगार मिल सकता है। उन्होंने स्वदेशी को स्वराज की ओर पहला कदम बताया और कहा कि विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार से स्वराज सुरक्षित रहेगा।
उन्होंने कारखानों और हस्तशिल्प उद्योगों के बीच सहयोग की बात की, जिसमें मिल आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे सकती हैं।
1921 में बंबई के उनके दौरे का सबसे प्रसिद्ध घटना 31 जुलाई को एल्फिंस्टन मिल्स में विदेशी कपड़ों की होली जलाना था। यह कार्यक्रम बाल गंगाधर तिलक की याद में आयोजित किया गया था।
गांधीजी ने इसे संस्कार या पवित्र कार्य मानते हुए कहा कि लोग इस आग के जरिए गुलामी के निशान को छोड़ रहे हैं और आत्मशुद्धि प्राप्त कर रहे हैं।
इस आंदोलन ने अगस्त 1921 आते-आते नया रूप ले लिया। 22 अगस्त 1921 को महात्मा गांधी ने पूरे देश में विदेशी कपड़ों की होली जलाने का आह्वान किया। इस दिन हजारों भारतीयों ने इकट्ठा होकर विदेशी कपड़ों को आग के हवाले किया और खादी को अपनाने का संकल्प लिया। यह घटना न केवल आर्थिक स्वतंत्रता का प्रतीक थी, बल्कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ एक मजबूत संदेश भी थी।
गांधीजी का मानना था कि विदेशी कपड़ों का बहिष्कार भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देगा और स्थानीय कारीगरों को सशक्त करेगा।
इस आंदोलन के कारण ब्रिटिश हुकूमत को नुकसान उठाना पड़ा। विदेशी कपड़ों के बहिष्कार से ब्रिटिश टेक्सटाइल उद्योग को आर्थिक नुकसान हुआ, जो भारत से कच्चा माल लेकर कपड़े बनाता था। इसके अलावा, खादी को अपनाने से भारतीय समाज में एकता और आत्मविश्वास की भावना जगी। स्वतंत्रता की लड़ाई में खादी केवल एक कपड़ा नहीं, बल्कि स्वतंत्रता और स्वाभिमान का प्रतीक बन गया।
इस घटना ने स्वदेशी आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन दिलाया। पूरे देश में खादी को बढ़ावा देने के लिए चरखा और हथकरघा आंदोलन को गति मिली। महात्मा गांधी ने खुद चरखा चलाकर और खादी पहनकर इस आंदोलन का नेतृत्व किया। यह कदम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।