क्या वाराणसी में महिलाओं ने संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया व्रत रखा?

सारांश
Key Takeaways
- जितिया व्रत का उद्देश्य संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि है।
- महिलाएं इस दिन निर्जला उपवास रखती हैं।
- इस व्रत की परंपरा दादी-नानी के समय से चली आ रही है।
- अष्टमी तिथि को पूजा के साथ जिउतिया गीत गाए जाते हैं।
- पारण में मड़ुआ की रोटी और नोनी का साग का सेवन किया जाता है।
वाराणसी, 14 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के तहत रविवार को वाराणसी में सैकड़ों माताओं ने जितिया व्रत रखा। इस अवसर पर शहर के विभिन्न घाटों और कुंडों पर बड़ी संख्या में व्रती महिलाएं एकत्रित हुईं और भगवान जीमूतवाहन की पूजा विधिपूर्वक की।
यह व्रत अष्टमी तिथि को आयोजित किया जाता है, जिसमें महिलाएं पूरा दिन निर्जला उपवास रखती हैं। इससे एक दिन पहले सप्तमी को 'नहाय-खाय' की परंपरा निभाई जाती है, जहां महिलाएं पवित्र स्नान के बाद सात प्रकार के अनाज से बनी खुरचन का सेवन करती हैं। अष्टमी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत का संकल्प लिया जाता है और दिनभर पूजा-पाठ किया जाता है।
ज्ञात हो कि जितिया व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में मृत शिशु को पुनर्जीवित किया था। उस शिशु का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया, जो आगे चलकर राजा परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी घटना की स्मृति में यह व्रत मनाया जाता है।
वाराणसी के लक्ष्मी कुंड, शीतला घाट, महमूरगंज, और नागवासुकी मंदिर परिसर में महिलाओं ने पूजा की। इस दौरान घाटों पर हजारों की संख्या में भीड़ देखी गई। महिलाएं पूजा की थाली में आठ प्रकार के फल, सिंदूर, चूड़ा, दही, खीरा, केराव और अन्य पारंपरिक सामग्री लेकर आईं। पूजा के दौरान जितिया व्रत कथा सुनने का महत्व बताया गया है, क्योंकि बिना इसे सुने व्रत अधूरा माना जाता है।
व्रती महिला सरिता ने कहा, "यह व्रत मैं अपने बेटे की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखती हूं। यह परंपरा हमारी दादी-नानी के समय से चली आ रही है।"
वहीं, सुनीता ने कहा, "हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि इस व्रत में बड़ी ताकत होती है। यह बच्चों को हर संकट से बचाता है।"
पुजारी पुरुषोत्तम पांडेय ने बताया कि व्रती महिलाएं रातभर जागरण करती हैं और पारंपरिक जिउतिया गीत गाती हैं। अगले दिन नवमी तिथि को सूर्य को अर्घ्य देने के बाद महिलाएं पारण करती हैं। पारण में मड़ुआ की रोटी, भात और नोनी का साग का सेवन किया जाता है।