क्या जैवलिन थ्रो, युद्ध के लिए इस्तेमाल होने वाला भाला, ओलंपिक खेल का हिस्सा बन गया?
सारांश
Key Takeaways
- जैवलिन का इतिहास युद्ध से जुड़ा है।
- नीरज चोपड़ा ने जैवलिन थ्रो में भारत को नई पहचान दी।
- जैवलिन खेल में महिलाओं की भागीदारी महत्वपूर्ण है।
- भाले के डिजाइन में समय के साथ परिवर्तन आया है।
- जैवलिन थ्रो एक रोमांचक खेल है।
नई दिल्ली, 4 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। इस समय जैवलिन एक अत्यंत चर्चित खेल बन चुका है। टोक्यो ओलंपिक में नीरज चोपड़ा द्वारा स्वर्ण पदक जीतने के बाद भारत में जैवलिन की लोकप्रियता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इस खेल को लेकर युवाओं के बीच वैश्विक स्तर पर उत्साह देखने को मिल रहा है। शक्ति और तकनीक से परिपूर्ण इस खेल का इतिहास बहुत पुराना है और शुरूआत में जैवलिन का स्वरूप आज के जैसा नहीं था।
जैवलिन थ्रो (भाला फेंकने) की शुरुआत लगभग 2700-2800 साल पहले ग्रीस (यूनान) में हुई थी। इसका आविष्कार खेल के रूप में नहीं बल्कि युद्ध और शिकार के लिए किया गया था। बाद में, यह खेल का हिस्सा बन गया। प्राचीन काल में भाला मुख्य हथियार के रूप में उपयोग किया जाता था। होमर के महाकाव्य इलियड में ट्रोजन युद्ध के दौरान योद्धा दुश्मन की ओर भाले फेंकते हुए दिखाई देते हैं। हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी भाले का उल्लेख है। पुराने समय में भाला 2-3 मीटर लंबा होता था और यह लकड़ी या लोहे का बना होता था।
भाले का उपयोग धीरे-धीरे युद्ध क्षेत्र से खेल के मैदान में होने लगा। खेल के लिए प्रारंभ में उपयोग किए गए भाले की लंबाई 2.3 से 2.5 मीटर होती थी और इसके बीच में चमड़े की पतली रस्सी लपेटी जाती थी। एथलीट इस रस्सी को अपनी उंगली में फंसाकर भाला फेंकते थे, जिससे भाले को घूमने की गति मिलती थी और वह अधिक दूरी तक जाता था। यह तकनीक आज भी प्रचलित है। मध्यकाल और पुनर्जागरण के दौरान यूरोप के कई देशों में भाला फेंकना एक लोकप्रिय खेल बना रहा। आयरलैंड, स्कॉटलैंड, जर्मनी, स्वीडन और फिनलैंड में ग्रामीण क्षेत्रों में लोग लकड़ी के भाले फेंकने की प्रतियोगिताएं करते थे। फिनलैंड में इसे राष्ट्रीय खेल माना जाता था।
708 बीसी में प्राचीन ओलंपिक खेलों में जैवलिन थ्रो को शामिल किया गया। 1896 में जब आधुनिक ओलंपिक की शुरुआत हुई, उस समय ओलंपिक में जितने भी खेल शामिल थे, उनमें भाला फेंक भी महत्वपूर्ण खेल के रूप में उपस्थित था। उस समय एथलीटों को भाले को जिस तरह चाहें फेंकने की अनुमति थी, लेकिन यह खेल उस वक्त केवल पुरुषों के लिए आयोजित होता था।
1912 के स्टॉकहोम ओलंपिक तक दोनों हाथों से फेंकने की स्पर्धा भी होती थी, लेकिन बाद में इसे समाप्त कर दिया गया। महिलाओं की जैवलिन स्पर्धा पहली बार 1932 के लॉस एंजेलिस ओलंपिक में शामिल की गई। भाले के डिजाइन में बदलाव 1950 तक भाला पूरी तरह ठोस लकड़ी का बना होता था। 1953 में अमेरिकी एथलीट बड हेल्ड ने खोखले धातु के भाले का निर्माण किया, जिससे वह बहुत दूर फेंका जा सकता था। 1986 में पूर्वी जर्मनी के उवे होन ने 104.80 मीटर तक भाला फेंका था, जो स्टेडियम की सीमा से बाहर चला गया। सुरक्षा कारणों से 1986 (पुरुष) और 1999 (महिला) में भाले का डिजाइन परिवर्तित किया गया। अब भाले को नीचे की ओर गिरने की तकनीक से बनाया गया है।
जैवलिन थ्रो लगातार बढ़ती लोकप्रियता के साथ-साथ परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। इससे खेल के रूप में इसकी प्रतिष्ठा और रोमांच में भी वृद्धि हो रही है।