क्या सचिन नाग गंगा में कूदकर तैराकी में भारत का सबसे बड़ा तैराक बने?

सारांश
Key Takeaways
- सचिन नाग ने तैराकी में भारत का नाम रोशन किया।
- गंगा में कूदकर उन्होंने अपनी जान बचाई।
- एशियन खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय तैराक।
- उनका संघर्ष और मेहनत प्रेरणा का स्रोत है।
- ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित।
नई दिल्ली, 4 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। तैराकी भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। लेकिन इसे एक खेल के रूप में स्थापित करने में सचिन नाग का योगदान अद्वितीय है। एशियन खेलों में तैराकी में स्वर्ण पदक जीतने वाले सचिन नाग भारत के पहले तैराक हैं।
सचिन नाग का जन्म 5 जुलाई 1920 को वाराणसी में हुआ। गंगा नदी के किनारे जन्म होने के कारण तैराकी में रुचि स्वाभाविक थी, लेकिन इस खेल में उनकी भागीदारी संयोग से शुरू हुई।
एक रिपोर्ट के अनुसार, 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान वाराणसी के गंगा घाट पर एक सार्वजनिक रैली आयोजित की गई। 10 साल के सचिन भी इस रैली में शामिल थे। जब ब्रिटिश अधिकारियों ने भीड़ पर लाठीचार्ज किया, तब सचिन ने अपनी जान बचाने के लिए गंगा में कूदकर तैरना शुरू किया। उस समय एक तैराकी प्रतियोगिता भी चल रही थी और सचिन तैराकों की कतार में शामिल हो गए। 10 किलोमीटर की प्रतियोगिता समाप्त होने पर सचिन तीसरे स्थान पर आए। यह उस तैराक के करियर की शुरुआत थी, जिसने बाद में देश का नाम रोशन किया।
1930 से 1936 के बीच, सचिन नाग ने कई स्थानीय तैराकी प्रतियोगिताओं में भाग लिया और हमेशा शीर्ष दो में अपनी जगह बनाई। उनकी प्रतिभा देखकर मशहूर तैराकी कोच जामिनी दास ने उन्हें कोलकाता बुलाया और उच्च स्तर पर प्रशिक्षण दिया। बंगाल के हाटखोला क्लब की ओर से सचिन ने राज्य चैंपियनशिप में भाग लेना शुरू किया।
1938 में उन्होंने 100 मीटर और 400 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी में जीत हासिल की। 1939 में 100 मीटर फ्रीस्टाइल के राष्ट्रीय रिकॉर्ड की बराबरी की और 200 मीटर फ्रीस्टाइल में नया रिकॉर्ड बनाया। 1940 में, सचिन ने साथी तैराक दिलीप मित्रा द्वारा बनाए गए 100 मीटर फ्रीस्टाइल रिकॉर्ड को तोड़ दिया। वह लगातार 9 वर्षों तक राज्य स्तर पर 100 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी प्रतियोगिता के विजेता रहे।
सचिन नाग 1948 के ओलंपिक में भाग लेने की इच्छा रखते थे, लेकिन 1947 में प्रशिक्षण के दौरान उन्हें गोली लग गई। डॉक्टरों ने उन्हें अगले दो साल तक तैराकी से दूर रहने को कहा। नाग ओलंपिक का अवसर खोना नहीं चाहते थे, इसलिए उन्होंने 6 महीनों की कठिन मेहनत के बाद खुद को तैयार किया। हालांकि, ओलंपिक के लिए धन जुटाना उनके लिए चुनौतीपूर्ण था, लेकिन उन्होंने जगह-जगह घूमकर धन जुटाया। उस समय के प्रसिद्ध गायक हेमेंट मुखोपाध्याय ने एक कार्यक्रम आयोजित कर उनके लिए धन जुटाया। इस प्रकार, सचिन 1948 के ओलंपिक में शामिल हुए और 100 मीटर फ्रीस्टाइल में छठा स्थान प्राप्त किया।
सचिन नाग के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन 8 मार्च 1951 को आया। नई दिल्ली में आयोजित एशियाई खेलों में उन्होंने 100 मीटर फ्रीस्टाइल में स्वर्ण पदक जीता। उस समय दर्शक दीर्घा में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी उपस्थित थे। नेहरू नाग की प्रदर्शन से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने तुरंत उन्हें गले लगाया और अपने पॉकेट से एक गुलाब का फूल निकालकर उन्हें दिया। 1951 के एशियाई खेलों में सचिन ने 4×100 मीटर फ्रीस्टाइल रिले और 3×100 मीटर फ्रीस्टाइल रिले में कांस्य पदक भी जीते। सचिन 1952 के ओलंपिक में भी भारतीय टीम का हिस्सा रहे।
एक सफल तैराक होने के बावजूद, सचिन नाग ने जीवन भर वित्तीय समस्याओं का सामना किया। 19 अगस्त 1987 को उन्होंने 67 वर्ष की आयु में निधन लिया।
सचिन को उनके निधन के 36 वर्षों बाद, 2020 में केंद्र सरकार द्वारा ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित किया गया।