क्या अबू आजमी नफरत फैलाने वालों के खिलाफ प्राइवेट बिल लाएंगे?

सारांश
Key Takeaways
- नफरत फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कानून जरूरी है।
- प्राइवेट बिल लाने का निर्णय अबू आजमी का है।
- लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
- कुरान शरीफ और अन्य धार्मिक ग्रंथों का अपमान करना गलत है।
- हिंदी को राजभाषा के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए।
मुंबई, 19 मई (राष्ट्र प्रेस)। समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी ने कहा है कि वह महाराष्ट्र विधानसभा के आगामी सत्र में नफरत फैलाने वालों के खिलाफ कठोर कानून की मांग करेंगे और एक प्राइवेट बिल पेश करेंगे।
समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से बातचीत के दौरान अबू आजमी ने कहा, "देश में लोकतंत्र है और संविधान हर किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, चाहे वह कोई आम नागरिक हो या उच्च पद पर बैठा व्यक्ति। लेकिन, इसी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते हुए कुछ लोग देवी-देवताओं, डॉ. भीमराव अंबेडकर, महात्मा गांधी और छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे महान नेताओं का अपमान करते हैं, जिससे देश में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति बिगड़ती है।"
उन्होंने कहा कि धार्मिक ग्रंथों जैसे कुरान शरीफ या अन्य किताबों पर आपत्तिजनक टिप्पणियां करने से देश में तनाव बढ़ता है और दंगे होते हैं। अगर किसी ने रसूल अल्लाह के बारे में कुछ कहा तो दुनिया के कई देशों में उसे फांसी दी जाती है। लेकिन हमारे देश में लोग पब्लिसिटी के लिए कुछ भी बोल जाते हैं। ऐसा कानून आना चाहिए जिसमें 10 साल की सजा हो और आरोपी को जमानत न मिले। मुख्यमंत्री को चाहिए कि वह इस पर कानून बनाएं। मैं आगामी विधानसभा सत्र में नफरत फैलाने वालों के खिलाफ एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश करुंगा।
समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद एसटी हसन ने योगा डे पर छुट्टी देने लेकिन नमाज पर छुट्टी न देने के लिए सरकारों की आलोचना की है। इस पर अबू आजमी ने कहा कि मुसलमानों के लिए नमाज पढ़ना फर्ज़ है, चाहे वे बीमार ही क्यों न हों। इसलिए सरकार को नमाज के लिए छुट्टी देनी चाहिए। योग हर धर्म के लिए जरूरी नहीं है। अगर कोई नमाज नहीं पढ़ता है तो पाप लगता है, लेकिन योग न करने से कोई पाप नहीं होता।
राज ठाकरे द्वारा महाराष्ट्र में हिंदी भाषा के खिलाफ दिए जा रहे बयान पर आजमी ने कहा कि हिंदी देश की राजभाषा है। एक कमेटी देशभर में जाकर हिंदी के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रही है। कुछ लोग हिंदी के नाम पर नफरत फैला रहे हैं और इसे वोट की राजनीति का हिस्सा बना रहे हैं। महाराष्ट्र में मराठी को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, लेकिन हिंदी और इंग्लिश को भी बराबर जगह दी जानी चाहिए।