क्या कांग्रेस के दबाव में सरकार जाति जनगणना कराने को मजबूर हुई है? : सप्तगिरि उलाका

सारांश
Key Takeaways
- जाति जनगणना का निर्णय एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा है।
- कांग्रेस का दबाव सरकार पर स्पष्ट दिखता है।
- ओडिशा सरकार पर विकास में विफलता के आरोप हैं।
- जाति जनगणना से बेहतर नीतियों की उम्मीद है।
- प्रधानमंत्री को विपक्ष के साथ चर्चा करने का सुझाव दिया गया है।
नई दिल्ली, 16 जून (राष्ट्र प्रेस)। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जाति जनगणना को लेकर अधिसूचना जारी की है, जिसके बाद कांग्रेस सांसद सप्तगिरि उलाका ने यह आरोप लगाया है कि कांग्रेस पार्टी के दबाव में केंद्र सरकार को जाति जनगणना कराने के लिए बाध्य होना पड़ा है। उन्होंने इसके लिए एक स्पष्ट समय सीमा निर्धारित करने की मांग की है।
सप्तगिरि उलाका ने सोमवार को समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा, "कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी के लगातार दबाव के कारण सरकार जाति जनगणना कराने के लिए मजबूर हुई। लेकिन हमारी मांग जाति जनगणना की घोषणा तक सीमित नहीं है, हम स्पष्ट समयसीमा, आवंटित बजट का विवरण और जनगणना के संचालन के लिए अपनाए जाने वाले मॉडल के बारे में भी जानकारी चाहते हैं। यह प्रक्रिया तेलंगाना में जिस तरह से बातचीत कर मॉडल निकाला गया है, उसी तरह होनी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस पर विपक्ष के सभी नेताओं के साथ चर्चा करनी चाहिए।"
यह पहली बार है जब जाति गणना को जनगणना में शामिल किया जा रहा है। हाल ही में हुई कैबिनेट बैठक में केंद्र ने जाति आधारित गणना को मंजूरी दी थी, ताकि सरकार बेहतर नीतियां बना सके और इन्हें लक्ष्य-आधारित कर सके।
सप्तगिरि उलाका ने ओडिशा सरकार के एक साल पूरे होने पर कहा कि इस एक साल में राज्य में कोई भी काम नहीं हुआ है, लेकिन सरकार विकास मेला कर अपनी उपलब्धियों का प्रचार कर रही है। सरकार ने हर वृद्ध, विधवा और दिव्यांग को 3,000 रुपए पेंशन देने का वादा किया था। बिजली फ्री करने, हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने जैसे कई वादे किए गए थे, लेकिन एक भी वादा पूरा नहीं हुआ है।
उन्होंने राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि ओडिशा सरकार हर मोर्चे पर विफल रही है, कानून-व्यवस्था में गिरावट आई है और इस सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ा है। राज्य में महिलाओं पर अत्याचार, बेरोजगारी और पलायन की समस्याएं बढ़ी हैं, विकास नहीं। आदिवासी मुख्यमंत्री होने के नाते लोगों को उम्मीद थी कि वे आदिवासियों की रक्षा करेंगे, लेकिन शोषण बढ़ गया है।