क्या आप जानते हैं कवि, नाटककार, पत्रकार और संपादक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का अनूठा सफर?

सारांश
Key Takeaways
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने कविता, नाटक, और पत्रकारिता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- उनकी रचनाएं समाज की गहराईयों को छूती हैं।
- उन्होंने बच्चों के लिए भी महत्वपूर्ण साहित्य लिखा।
- उनका नाटक 'बकरी' राजनीतिक व्यंग्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
- उन्हें 1983 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
मुंबई, 14 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में ऐसे कुछ लेखक होते हैं जिनकी कलम सिर्फ कविता नहीं लिखती, बल्कि वे नाटक भी बखूबी रचते हैं। बच्चों के लिए कविताएं और वयस्कों के लिए तीखे व्यंग्य लिखने वाले सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ऐसे ही एक अद्वितीय लेखक थे। उनकी रचनाओं में केवल शब्द ही नहीं, बल्कि अनुभव, संवेदना और समाज की धड़कनें भी समाहित थीं।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने कविता, नाटक, बाल साहित्य, उपन्यास और पत्रकारिता जैसी सभी विधाओं में लेखन किया। वे हिंदी के ऐसे कलाकार थे जिनके अंदर एक साथ कई लेखक समाहित थे।
उनका जन्म 15 सितंबर 1927 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुआ। एक छोटे कस्बे से आने वाले सर्वेश्वर ने कभी नहीं सोचा था कि वे हिंदी साहित्य के एक प्रमुख नाम बनेंगे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बस्ती में प्राप्त की और फिर बनारस गए, जहाँ क्वींस कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए किया। इसी शहर ने उन्हें साहित्य के वास्तविक रंगों से परिचित कराया और उन्होंने लेखन की शुरुआत की।
अपने प्रारंभिक करियर में, सर्वेश्वर को एजी ऑफिस में डिस्पैचर की नौकरी मिली। नौकरी के दौरान भी उन्होंने अपनी रचनात्मकता को बनाए रखा। थोड़े समय बाद वे दिल्ली चले गए, जहाँ वे ऑल इंडिया रेडियो में हिंदी समाचार विभाग के सहायक संपादक बने। लेकिन रेडियो की नौकरी के बाद भी उनका मन साहित्य की ओर ही झुका रहा।
1964 में, जब प्रसिद्ध पत्रकार और साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' ने 'दिनमान' पत्रिका की स्थापना की, तो उन्होंने सर्वेश्वर को अपने साथ शामिल किया। यह उनकी साहित्यिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। दिनमान में उन्होंने 'चरचे और चरखे' नामक स्तंभ लिखा, जो व्यंग्य और सामाजिक टिप्पणी का अनूठा मिश्रण था। यही मंच था जिसने उन्हें एक गंभीर पत्रकार के रूप में स्थापित किया।
कविता उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा थी। उनकी कविताएं नई कविता आंदोलन का हिस्सा बनीं और 'तीसरा सप्तक' में शामिल हुईं, जो हिंदी कविता के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है। सर्वेश्वर की कविताएं प्रेम, पीड़ा, राजनीति और समाज के हर पहलू को छूती थीं। उन्होंने 'तुम्हारे साथ रहकर...' जैसी प्रेम कविताएं लिखीं, जो आज भी पाठकों के दिलों को छू जाती हैं।
उन्होंने नाटक भी लिखे, जिनमें उनका नाटक 'बकरी' इतना तीखा राजनीतिक व्यंग्य था कि आपातकाल के दौरान सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया। इतना ही नहीं, इस नाटक पर मॉरीशस में भी बैन लगाया गया। इसके अलावा 'अब गरीबी हटाओ', 'हवालात', और 'लड़ाई' जैसे नाटकों ने मंच पर नई ऊर्जा भरी।
बच्चों के लिए लिखना उनके लिए एक सामाजिक जिम्मेदारी थी। वे मानते थे कि जिस देश में अच्छा बाल साहित्य नहीं है, उसका भविष्य सुरक्षित नहीं रह सकता। उन्होंने 'बतूता का जूता' और 'महंगू की टाई' जैसी बाल कविताएं लिखीं, जो आज भी बच्चों की किताबों में शामिल हैं। 1982 में उन्हें बाल पत्रिका 'पराग' का संपादक बनाया गया और वे अपने अंतिम समय तक इससे जुड़े रहे।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना को उनके कविता संग्रह 'खूंटियों पर टंगे लोग' के लिए 1983 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। 23 सितंबर 1983 को उनका निधन हो गया।