क्या विदेशी निवेशकों ने इस सप्ताह भारतीय शेयर बाजारों में 3,346 करोड़ रुपए का निवेश किया?

सारांश
Key Takeaways
- विदेशी निवेशकों ने इस सप्ताह 3,346 करोड़ रुपए का निवेश किया।
- आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में कटौती ने बाजार में सकारात्मकता पैदा की।
- भारत विदेशी निवेश के लिए एक आकर्षक गंतव्य बना हुआ है।
- मई में 19,860 करोड़ रुपए का निवेश हुआ था।
- वैश्विक कारकों का बाजार पर प्रभाव जारी है।
नई दिल्ली, 14 जून (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा ब्याज दरों में कमी के बाद निवेशकों का विश्वास और भी मजबूत हुआ है। इसी के साथ, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने इस सप्ताह भारतीय शेयर बाजारों में 3,346.94 करोड़ रुपए का निवेश किया।
नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) के आंकड़ों के अनुसार, एफपीआई ने 9 से 13 जून के दौरान भारतीय इक्विटी बाजार में सक्रियता से खरीददारी की।
बाजार में सकारात्मकता मुख्यतः आरबीआई द्वारा रेपो दर को 50 आधार अंकों से घटाकर 5.5 प्रतिशत करने के निर्णय से जुड़ी हुई है। इसे आर्थिक विकास को समर्थन देने और बाजार में लिक्विडिटी में सुधार के स्पष्ट संकेत के रूप में देखा गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस आश्चर्यजनक कटौती ने विदेशी निवेश को आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, क्योंकि यह केंद्रीय बैंक के विकास समर्थक दृष्टिकोण का प्रतीक है।
6 जून को मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के निर्णय का स्वागत किया गया है। इसे अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और कॉर्पोरेट आय में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना गया।
हालांकि वैश्विक कारक बाजार की गतिविधियों को प्रभावित करते हैं, भारत अपनी मजबूत बुनियादी बातों और बढ़ती अर्थव्यवस्था के कारण विदेशी निवेश के लिए एक आकर्षक गंतव्य बना हुआ है।
विदेशी निवेशकों ने मई में भारतीय शेयर बाजार में 19,860 करोड़ रुपए का निवेश किया, जिससे यह साल का अब तक का सबसे अच्छा महीना बन गया।
इस सप्ताह भारतीय इक्विटी बाजार में उतार-चढ़ाव देखा गया और यह आखिरी कारोबारी दिन लाल निशान पर समाप्त हुआ।
हालांकि शुरुआत में अमेरिका-चीन व्यापार वार्ता में प्रगति के कारण सकारात्मकता रही, लेकिन इजरायल द्वारा ईरान की न्यूक्लियर साइट्स पर हमले के बाद यह आशावाद जल्दी ही खत्म हो गया।
इस घटना ने वैश्विक निवेशकों के बीच सतर्कता की लहर पैदा कर दी, जिससे उन्होंने सुरक्षित परिसंपत्तियों की ओर रुख किया।
तेल की कीमतें भी 76 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर चली गईं, जिससे आपूर्ति में व्यवधान को लेकर नई चिंताएं उठी हैं।