क्या प्रशंसकों की भीड़ को देवानंद ने कहा था, 'हां, मैं शम्मी कपूर हूं'?
सारांश
Key Takeaways
- देवानंद का दिल बड़ा और दयालु था।
- फिल्मों के साथ-साथ उनकी जीवन की कहानियाँ भी प्रेरणादायक हैं।
- उनकी मुस्कान और आत्मविश्वास अद्भुत थे।
- वे हमेशा अपने फैंस को खुश रखने की कोशिश करते थे।
- देवानंद का कॅरियर एक मिसाल है।
मुंबई, 2 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। फिल्म उद्योग में कई अदाकारे आए और चले गए, लेकिन एक ऐसा सितारा था जो सिर्फ हीरो नहीं, बल्कि परमानेंट इमोशन बन गया। वह न कभी परदे से उतरे, न ही दिलों से। हम बात कर रहे हैं धर्मदेव पिशोरीमल आनंद, जिन्हें देवानंद के नाम से जाना जाता है और हिंदी सिनेमा का देव कहा जाता है।
देवानंद की पुण्यतिथि 3 दिसंबर को है। उनकी फ़िल्में अमर हैं और उनके जीवन के किस्से और भी मजेदार हैं।
अभिनेत्री शायरा बानो ने एक दिलचस्प किस्सा साझा किया। उन्होंने कहा, "लेबनान के बालबेक में खंडहरों के बीच गाना शूट हो रहा था। वहां मौजूद विदेशी दर्शकों ने जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया, 'शम्मी कपूर… शम्मी कपूर।' उस समय 'जंगली' फ़िल्म सुपरहिट थी और भीड़ ने देव साहब को शम्मी कपूर समझ लिया। कोई और होता तो शायद नाराज हो जाता, लेकिन देवानंद ने मुस्कुराते हुए हाथ हिलाया और बड़े आत्मविश्वास से कहा, 'हां… हां… हेलो! मैं शम्मी कपूर हूं।' उस दिन यह समझ आया कि देव साहब का दिल कितना बड़ा है।"
हर चुनौती को स्टाइल से पार करना और फैंस को हमेशा एक मुस्कुराता चेहरा दिखाना यही उनकी पहचान थी। उनका दिल सिर्फ बड़ा नहीं, बल्कि फैंस के लिए बेहद नाज़ुक भी था।
अपनी बायोपिक 'रोमांसिंग विद लाइफ' में उन्होंने लिखा कि एक छोटी-सी बीमारी के लिए लंदन जाकर गुपचुप ऑपरेशन करवाया। किसी को इसकी ख़बर नहीं हुई। वजह? मेरे फैंस मुझे कभी कमजोर या बीमार नहीं देख सकते।
पंजाब के गुरदासपुर में जन्मे देवानंद ने फ़िल्मों में कदम रखने से पहले बॉम्बे के एक ऑफिस में काम किया, जहाँ वह अधिकारियों के प्रेम-पत्र पढ़ते थे। दिलचस्प बात यह है कि उन पत्रों में इतना रोमांस था कि उनकी सभी स्क्रिप्ट्स वहीं से तैयार होने लगीं।
एक दिन एक पत्र में लिखा मिला “बस करो।” वही दो शब्द पढ़कर उन्होंने नौकरी छोड़ दी और सिनेमा की दुनिया में कदम रखा। इसके बाद उनकी लोकप्रियता एक मिसाल बन गई।