क्या धर्मेंद्र ने पद्म भूषण से लेकर लाइफटाइम अवॉर्ड्स जीतकर सिनेमा के बादशाह बने?

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क्या धर्मेंद्र ने पद्म भूषण से लेकर लाइफटाइम अवॉर्ड्स जीतकर सिनेमा के बादशाह बने?

सारांश

धर्मेंद्र, हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता, ने अपने शानदार करियर में कई पुरस्कार जीते और भारतीय सिनेमा को नई दिशा दी। उनकी मेहनत और संघर्ष की कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि उनके योगदान को भी दर्शाती है। उनके निधन के बाद, उनकी उपलब्धियों को याद करना एक श्रद्धांजलि है।

Key Takeaways

  • धर्मेंद्र का जीवन संघर्ष और सादगी का प्रतीक है।
  • उन्होंने 300 से अधिक फिल्मों में काम किया और कई पुरस्कार जीते।
  • उनकी उपलब्धियों ने उन्हें हिंदी सिनेमा का बादशाह बना दिया।
  • धर्मेंद्र का योगदान भारतीय सिनेमा के विकास में महत्वपूर्ण है।
  • उनके प्रेरणादायक जीवन से आने वाली पीढ़ियों को सीखने को मिलेगा।

मुंबई, 24 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। महान अभिनेता धर्मेंद्र हिंदी सिनेमा के उन कुछ चुनिंदा सितारों में से एक हैं, जिन्होंने न केवल अपने अभिनय से दर्शकों के दिलों पर राज किया, बल्कि अपनी सादगी, संघर्ष और अटूट मेहनत से एक मिसाल पेश की। उनके निधन ने पूरे देश में शोक की लहर दौड़ा दी है। इस समय, हर कोई उनके छह दशकों से अधिक लंबे सफर को याद कर रहा है।

8 दिसंबर 1935 को पंजाब के एक छोटे से गांव नसराली में जन्मे धर्म सिंह देओल का जीवन बेहद साधारण था। उनके पिता, कृष्ण देओल, एक स्कूल प्रिंसिपल थे, और मां का नाम सतवंत कौर था। माता-पिता की परवरिश ने उन्हें मिट्टी से जोड़े रखा, लेकिन सिनेमा का जादू उन्हें मुंबई खींच लाया। शुरुआती दिनों में उन्होंने काफी संघर्ष किया, गैरेज के बाहर सोए और 200 रुपए की सैलरी वाली नौकरी भी की। 1960 में उन्हें फिल्म 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' का ऑफर मिला, जिससे उन्होंने बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत की।

इसके बाद, वह 'फूल और पत्थर', 'बंदिनी', और 'आंखें' जैसी फिल्मों से घर-घर में पहचाने जाने लगे। 1970 का दशक उनके लिए शानदार रहा, 'मेरा गांव मेरा देश', 'सीता और गीता', 'शोले', और 'धरम वीर' ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया। 'शोले' का प्रसिद्ध डायलॉग 'बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना' आज भी लोगों की जुबान पर है। इसके बाद, 'चरस', 'चुपके चुपके', 'प्यार किया तो डरना क्या', 'लाइफ इन ए... मेट्रो', और 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' जैसी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया। उन्होंने 300 से अधिक फिल्मों में काम किया, जिनमें 93 हिट और 49 सुपरहिट शामिल हैं।

धर्मेंद्र ने अपने करियर में कई पुरस्कार जीते, जो उनके हिंदी सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान के सबूत हैं।

धर्मेंद्र के पुरस्कारों की शुरुआत ही रोमांचक थी। 1965 में 'आई मिलन की बेला' के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का नामांकन मिला। यह वह समय था जब वे राजेंद्र कुमार और सायरा बानो जैसे दिग्गजों के साथ स्क्रीन शेयर कर रहे थे। अगले वर्ष, 1966 में 'फूल और पत्थर' ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पहला नामांकन दिलाया। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया था और मीना कुमारी के साथ उनकी जोड़ी ने रोमांस को नई परिभाषा दी।

1967 में 'अनुपमा' के लिए 14वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में स्मृति सम्मान मिला। 1969 की उनकी फिल्म 'सत्यकाम' को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला।

1970 का दशक आते ही धर्मेंद्र सुपरस्टार बन चुके थे और पुरस्कारों की बौछार शुरू हो गई। 1972 में 'मेरा गांव मेरा देश' के एक्शन हीरो रोल के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर नामांकन आया। 1974 में 'यादों की बारात' ने फिर नामांकन दिलाया। 'शोले' को 50वें फिल्मफेयर में सर्वोत्तम फिल्म का विशेष सम्मान मिला।

1990 के दशक में धर्मेंद्र निर्माता के रूप में चमके। 1990 में 'घायल' को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। सनी देओल की यह फिल्म 7 फिल्मफेयर अवॉर्ड जीत चुकी थी। 1991 में फिर 'घायल' के लिए सर्वश्रेष्ठ फिल्म का फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता। यह वह समय था जब वे राजनीति में भी सक्रिय हुए, 2004-2009 तक बीकानेर से सांसद बने। लेकिन सिनेमा में वे लगातार सक्रिय रहे।

2003 में सैंसुई व्यूअर्स चॉइस मूवी अवॉर्ड्स में जीवन भर की उपलब्धि का पुरस्कार मिला। 2004 में भारतीय सिनेमा में सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिए विशेष सम्मान मिला। 2005 में जी सिने अवॉर्ड में जीवन भर की उपलब्धि और 2007 में पुणे अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में जीवन भर की उपलब्धि, आईआईएफए लाइफटाइम अचीवमेंट, फिक्की-फ्रेम्स का लिविंग लीजेंड अवॉर्ड, और डीबीआर एंटरटेनमेंट और कौमी एकता का सम्मान मिला।

धर्मेंद्र को सामाजिक सेवाओं के लिए भी पुरस्कार मिला। उन्होंने 2008 में मैक्स स्टारडस्ट अवॉर्ड्स में अभिनेता पार एक्सीलेंस का नामांकन, 2009 में नासिक इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में जीवन भर की उपलब्धि, 2010 में बिग स्टार एंटरटेनमेंट अवॉर्ड्स में बिग स्टार एंटरटेनर, और 2011 में अप्सरा प्रोड्यूसर्स गिल्ड में जीवन भर की उपलब्धि जैसे पुरस्कार प्राप्त किए।

2012 में धर्मेंद्र को भारत सरकार का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण मिला, जो उनके योगदान का सबसे बड़ा प्रमाण था। 2017 में डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर नोबेल पुरस्कार और 2020 में न्यू जर्सी राज्य द्वारा जीवन भर की उपलब्धि का पुरस्कार उनके नाम रहा।

Point of View

संघर्ष और समर्पण ने उन्हें एक आदर्श बना दिया है। उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा।
NationPress
24/11/2025

Frequently Asked Questions

धर्मेंद्र का जन्म कब हुआ था?
धर्मेंद्र का जन्म 8 दिसंबर 1935 को पंजाब के गांव नसराली में हुआ था।
धर्मेंद्र ने कितनी फिल्मों में काम किया?
धर्मेंद्र ने 300 से अधिक फिल्मों में काम किया, जिनमें 93 हिट और 49 सुपरहिट शामिल हैं।
धर्मेंद्र को कौन-कौन से पुरस्कार मिले हैं?
धर्मेंद्र को कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें पद्म भूषण, फिल्मफेयर अवार्ड्स, और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार शामिल हैं।
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत कब की?
धर्मेंद्र ने अपने करियर की शुरुआत 1960 में फिल्म 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' से की थी।
धर्मेंद्र के प्रसिद्ध डायलॉग कौन से हैं?
'शोले' फिल्म का डायलॉग 'बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना' आज भी प्रसिद्ध है।
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