क्या बिहार विधानसभा चुनाव में बेलदौर सीट पर जदयू की पकड़ बनी रहेगी या इंडिया गठबंधन करेगा कमाल?

सारांश
Key Takeaways
- बेलदौर विधानसभा का राजनीतिक महत्व और जातीय समीकरण
- जदयू की जीत की हैट्रिक बनाए रखने की चुनौती
- विकास के मुद्दों का हाशिए पर रहना
- बढ़ती मतदाता संख्या का असर
- सियासी रणनीतियों में बदलाव की जरूरत
पटना, 4 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा के पूर्व ही सियासी हलचल तेज हो गई है। एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों ही अपने चुनावी योजनाओं को तैयार करने में व्यस्त हैं। राज्य की सभी विधानसभा सीटों पर संभावित प्रत्याशियों के चयन को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों में गतिविधियां बढ़ रही हैं। इस संदर्भ में, खगड़िया जिले की बेलदौर विधानसभा सीट इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है।
यह सीट 2008 में स्थापित हुई थी और पिछले तीन विधानसभा चुनावों में जेडीयू ने जीत की हैट्रिक बनाई है। 2010, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने इस सीट पर लगातार जीत हासिल की है। तीनों बार पन्ना लाल सिंह पटेल ने विजय प्राप्त की है। इस बार भी जदयू अपनी हैट्रिक को बनाए रखने के लिए प्रयासरत है, जबकि एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर उत्सुकता बनी हुई है।
2010 के पहले के चुनाव में, जदयू के पन्ना लाल सिंह पटेल ने 45 हजार से अधिक वोट प्राप्त किए, जबकि लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की सुनिता शर्मा ने 31 हजार और कांग्रेस की उमा देवी ने 14,655 वोट प्राप्त किए। इसके बाद, 2015 में जदयू ने फिर से जीत दर्ज की, जब पन्ना लाल सिंह पटेल ने 63 हजार से अधिक वोट प्राप्त किए। उस समय लोजपा के मिथिलेश कुमार निषाद को 50 हजार से कम वोट मिले थे।
2020 के विधानसभा चुनाव में, जदयू के पन्ना लाल सिंह पटेल को 56,541 वोट प्राप्त हुए, जबकि कांग्रेस के चंदन कुमार उर्फ डॉ. चंदन यादव को 51,433 वोट मिले। वहीं, लोजपा के मिथिलेश कुमार निषाद को 31,229 और बसपा के सुशांत यादव को 3,547 वोट मिले।
बेलदौर में जातीय समीकरण चुनावी परिणामों को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यहां कुर्मी मतदाता 75 हजार की संख्या में सबसे बड़ी ताकत हैं, जो नीतीश कुमार के प्रति अपनी निष्ठा के लिए जाने जाते हैं। इसके अलावा, निषाद-सहनी 43 हजार, यादव 35 हजार, दलित 40 हजार, मुस्लिम 18 हजार, नागर 14 हजार, अगड़ी 17 हजार, कुशवाहा 20 हजार, पासवान 8 हजार और अन्य 50 हजार मतदाताओं की उपस्थिति इस क्षेत्र को राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाती है।
कुर्मी बहुल इस क्षेत्र में मतदान अक्सर जाति और पार्टी निष्ठा पर आधारित होता है, जिससे विकास के मुद्दे पीछे रह जाते हैं। बेलदौर विधानसभा विकास के मामले में अन्य क्षेत्रों की तुलना में काफी पीछे है। कोसी नदी की वार्षिक बाढ़ इस क्षेत्र के विकास कार्यों को बाधित करती है। टूटी सड़कें और पुलों की कमी यहां के प्रमुख मुद्दे हैं। इसके साथ ही, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं भी खराब स्थिति में हैं।
2020 में बेलदौर में 3,06,644 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 तक बढ़कर 3,20,807 होने की संभावना है। इस बढ़ती मतदाता संख्या के बीच, जदयू अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखना चाहती है।
बेलदौर के मतदाता विकास से ज्यादा जातीय और राजनीतिक निष्ठा को प्राथमिकता देते हैं, जिसके कारण इस क्षेत्र का समग्र विकास अब तक अधूरा है। क्या इस बार विकास का मुद्दा सियासत पर भारी पड़ेगा? यह सवाल बेलदौर के भविष्य को तय करेगा।