क्या इस मंदिर ने बदला बंगाल का भाग्य, राजा ने मां काली से पाया था विजय का वरदान?
सारांश
Key Takeaways
- मंदिर में मां काली की अद्भुत प्रतिमा है।
- यह मंदिर विजय और विश्वास का प्रतीक है।
- राजा कृष्ण चंद्र ने मां काली की तपस्या से जीत हासिल की।
- भक्त प्रतिमा को सिर पर उठाकर चलते हैं।
- मंदिर की मान्यता है कि मां भक्तों के संकट हरने के लिए बाहर आती हैं।
नई दिल्ली, 14 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भक्त अपनी कठिनाइयों और दुखों से मुक्ति के लिए देवी-देवताओं से आशीर्वाद लेने जाते हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल में एक ऐसा मंदिर है, जहां स्वयं मां भक्तों के संकट को दूर करने के लिए मंदिर से बाहर आती हैं।
पश्चिम बंगाल के नाओगांव के नजदीक काशीपुर गांव में स्थित मां काली का यह अद्भुत मंदिर कई मायनों में विशेष है। यह मंदिर श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक माना जाता है।
भक्त मां को प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रतिमा को सिर पर उठाकर चलते हैं और उन्हें विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह परंपरा सदियों से कायम है।
काली मंदिर के बारे में मान्यता है कि मां काली की प्रतिमा रात में गायब हो जाती है, क्योंकि मां अपने भक्तों के संकट को समाप्त करने के लिए स्वयं मंदिर का पवित्र स्थान छोड़कर जाती हैं। यह मंदिर अपनी चमत्कारी शक्ति और परंपरा के लिए प्रसिद्ध है, और मां को 'भवतारिणी' के रूप में पूजा जाता है, जो भक्तों को संकट से मुक्ति प्रदान करने के लिए धारण किया गया था।
मंदिर की प्रतिमा अद्भुत है, जिसमें मां काली भगवान शिव की छाती पर पैर रखकर खड़ी हैं। उनके हाथ में खड़ग और कमल का फूल है, जो उनके उग्र और कोमल दोनों रूपों को दर्शाता है। इसे बंगाल का भाग्य बदलने वाला मंदिर भी कहा जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब बंगाल पर ब्रिटिश सेना ने हमला किया था, राजा कृष्ण चंद्र ने उनका सामना किया था। इस युद्ध में कई गांव जल गए थे और राजा युद्ध में हारने के कगार पर थे।
कहा जाता है कि राजा ने मां काली की घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां काली स्वयं प्रकट हुईं और उन्हें लड़ने के लिए एक शक्तिशाली तलवार प्रदान की। इस घटना के बाद, राजा ने ब्रिटिश सेना को खदेड़ दिया। राज्य को बचाने के बाद राजा कृष्ण चंद्र 'कृष्ण-काली भक्त' के रूप में प्रसिद्ध हो गए। इसी कारण से मंदिर को विजय का प्रतीक और दिव्य ऊर्जा का स्रोत माना जाता है।