क्या पारू विधानसभा सीट पर चेहरा महत्वपूर्ण है या पार्टी? भाजपा के चार बार विधायक अशोक का एनडीए उम्मीदवार से मुकाबला

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क्या पारू विधानसभा सीट पर चेहरा महत्वपूर्ण है या पार्टी? भाजपा के चार बार विधायक अशोक का एनडीए उम्मीदवार से मुकाबला

सारांश

पारू विधानसभा सीट पर इस बार चुनावी समीकरण बदल गए हैं। भाजपा ने अपने चार बार के विधायक अशोक को टिकट नहीं दिया, और अब वे निर्दलीय उम्मीदवार हैं। क्या यह बदलाव इस सीट की राजनीति को प्रभावित करेगा?

Key Takeaways

  • पारू विधानसभा की राजनीति में बदलाव आ रहा है।
  • भाजपा ने अपने चार बार के विधायक को टिकट नहीं दिया।
  • कृषि यहाँ की प्रमुख आर्थिक गतिविधि है।
  • पारू धार्मिक दृष्टि से समृद्ध क्षेत्र है।
  • इस बार कुल 10 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं।

पटना, 28 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। मुजफ्फरपुर जिले की पारू विधानसभा उत्तर बिहार की राजनीति में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह वैशाली लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है और एक सामान्य वर्ग की सीट है।

अशोक कुमार सिंह इस क्षेत्र में पिछले दो दशकों से एक प्रमुख चेहरा रहे हैं। इन्होंने अक्टूबर 2005, 2010, 2015 और 2020 में भाजपा के टिकट पर लगातार चार बार जीत प्राप्त की। 2020 के चुनाव में इन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी शंकर प्रसाद को हराया था, जबकि कांग्रेस का प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहा था।

हालांकि, इस बार समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं। भाजपा ने अपने चार बार के विधायक अशोक कुमार सिंह को टिकट नहीं दिया है और अब वे निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने जा रहे हैं। भाजपा ने यह सीट अपने सहयोगी राष्ट्रीय लोक मोर्चा (उपेंद्र कुशवाहा) के खाते में दे दी है, जिसने मदान चौधरी को उम्मीदवार बनाया है।

वहीं राजद ने एक बार फिर शंकर प्रसाद पर भरोसा जताया है, जबकि जन सुराज पार्टी ने रंजना कुमारी को मैदान में उतारा है। इस बार कुल 10 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं।

जातिगत समीकरण की बात करें तो पारू विधानसभा में भूमिहार, यादव और राजपूत जातियों का दबदबा है। 1969 के बाद से अब तक यही जातियां इस क्षेत्र से विधायक चुनती रही हैं।

इस क्षेत्र में सरैया और पारू प्रखंड शामिल हैं, जहाँ मणिकपुर, भगवानपुर सिमरा, चिंतामनपुर, जगदीशपुर बाया, कमलपुरा, कोरिया निजामत, लालू छपरा, पारू उत्तर, पारू दक्षिण, रघुनाथपुर, रामपुर केशो उर्फ मलाही, बजितपुर और मंगुरहियां जैसी ग्राम पंचायतें आती हैं।

यह क्षेत्र पूरी तरह से ग्रामीण है और धार्मिक दृष्टि से समृद्ध है। यहाँ बाबा फुलेश्वर नाथ महादेव मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। इसके अलावा, यहाँ आस-पास आस्था के कई केंद्र हैं। यह क्षेत्र राज्य राजमार्गों से जुड़ा हुआ है, जबकि निकटतम रेलवे स्टेशन मुजफ्फरपुर जंक्शन है।

पारू की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। यहाँ धान, गेहूँ, मक्का और दलहन मुख्य फसलें हैं। कुछ क्षेत्रों में गन्ना और सब्जियों की खेती भी होती है। बड़े उद्योगों की अनुपस्थिति में यहाँ चावल मिल, ईंट भट्ठे और कृषि व्यापार केंद्र ही रोजगार के प्रमुख स्रोत हैं। पारू बाजार का साप्ताहिक हाट इस क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों का केंद्र है।

1957 में स्थापित इस विधानसभा क्षेत्र में अब तक 16 बार चुनाव हो चुके हैं। शुरुआती वर्षों में पारू कांग्रेस का गढ़ रहा, जिसने पहले पांच में से चार चुनाव जीते। हालाँकि उसे इस सीट पर आखिरी बार 1972 में जीत मिली थी। इसके बाद राजनीतिक समीकरण बदले और पिछले दो दशकों में यह सीट भाजपा का मजबूत किला बन गई। भाजपा नेता अशोक कुमार सिंह ने लगातार चार बार (2005, 2010, 2015, 2020) इस सीट से चुनाव जीता।

इस सीट पर जनता पार्टी और राजद ने दो-दो बार, जबकि संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, लोक दल, जनता दल और एक निर्दलीय प्रत्याशी ने भी एक-एक बार जीत हासिल की है।

Point of View

NationPress
28/10/2025

Frequently Asked Questions

पारू विधानसभा सीट की राजनीतिक महत्वता क्या है?
पारू विधानसभा सीट उत्तर बिहार की प्रमुख सीटों में से एक मानी जाती है, जहाँ जातिगत समीकरण और स्थानीय मुद्दे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इस बार चुनाव में कौन-कौन से प्रमुख उम्मीदवार हैं?
इस बार प्रमुख उम्मीदवारों में अशोक कुमार सिंह (निर्दलीय), मदान चौधरी (राष्ट्रीय लोक मोर्चा) और रंजना कुमारी (जन सुराज पार्टी) शामिल हैं।
पारू विधानसभा क्षेत्र की जनसंख्या का मुख्य व्यवसाय क्या है?
यहाँ की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है, जहाँ धान, गेहूँ और मक्का प्रमुख फसलें हैं।
पारू विधानसभा क्षेत्र का इतिहास क्या है?
पारू विधानसभा क्षेत्र 1957 में स्थापित हुआ और पहले कांग्रेस का गढ़ रहा, लेकिन पिछले दो दशकों से यह भाजपा का मजबूत किला बन गया है।
पारू विधानसभा क्षेत्र में धार्मिक स्थल कौन से हैं?
पारू में बाबा फुलेश्वर नाथ महादेव मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जहाँ श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं।