क्या भोलेनाथ के पुत्र मुरुगन के लिए मासिक कार्तिगाई है बेहद खास?

सारांश
Key Takeaways
- मासिक कार्तिगाई को विशेष रूप से भगवान शिव और मुरुगन को समर्पित किया जाता है।
- गौण योगिनी एकादशी का व्रत पापों से मुक्ति का मार्ग है।
- वैष्णव योगिनी एकादशी का व्रत पूर्व जन्मों के पापों से मुक्ति दिलाता है।
- दीप जलाने से नकारात्मकता दूर होती है।
- इन तिथियों का संयोग आध्यात्मिक उन्नति का अवसर प्रदान करता है।
नई दिल्ली, 21 जून (राष्ट्र प्रेस)। आषाढ़ कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि इस बार रविवार को आ रही है। इस दिन सूर्य देव मिथुन राशि में होंगे, जबकि चंद्रमा मेष से वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे। आज की तिथि पर मासिक कार्तिगाई, गौण योगिनी एकादशी और वैष्णव योगिनी एकादशी का अद्भुत संयोग बन रहा है।
पंचांग के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:55 से 12:51 बजे तक रहेगा और राहूकाल का समय शाम 05:38 से 07:22 बजे तक रहेगा। हालांकि, योगिनी एकादशी 21 जून को है, वैष्णव एकादशी 22 जून को मनाई जाएगी।
जब मासिक कार्तिगाई, गौण योगिनी और वैष्णव योगिनी एकादशी एक साथ आते हैं, तो यह तिथि बेहद पुण्यदायी और दुर्लभ मानी जाती है। इनका संयोग आध्यात्मिक उन्नति, पापों से मुक्ति और दिव्य फल की प्राप्ति के लिए अत्यंत सशक्त होता है।
पुराणों के अनुसार, मासिक कार्तिगाई, जिसे मासिक कार्तिगाई दीपम भी कहते हैं, हर महीने तब मनाया जाता है जब चंद्र मास के दौरान कार्तिगाई नक्षत्र प्रबल होता है। यह भगवान शिव और उनके पुत्र भगवान मुरुगन (कार्तिकेय) को समर्पित है और इसे अंधकार पर प्रकाश की विजय के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा और दीप जलाने से जीवन से नकारात्मकता दूर होती है।
गौण योगिनी एकादशी को भले ही द्वितीय श्रेणी का माना जाता हो, लेकिन इसका व्रत रखने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से यह व्रत रोग, दरिद्रता और मानसिक क्लेशों का उपचार करता है।
पद्म पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार, वैष्णव योगिनी एकादशी का व्रत 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान पुण्य प्रदान करता है। यह पापों का नाश करता है, विशेष रूप से पूर्व जन्मों के पापों से मुक्ति दिलाता है। यह कुष्ठ रोग और अन्य शारीरिक व्याधियों से राहत प्रदान करता है।
गौण योगिनी एकादशी गृहस्थ लोगों के लिए है, जबकि वैष्णव योगिनी एकादशी वैष्णव संप्रदाय के अनुयायियों के लिए है। गृहस्थ लोग 22 जून को दोपहर में व्रत तोड़ेंगे, जबकि वैष्णव जन 23 जून को सूर्योदय के बाद व्रत समाप्त करेंगे।
इन तीनों का एक साथ आना एक दुर्लभ संयोग होता है। इस दिन उपवास, दान, दीपदान, विष्णु-स्मरण और शिव पूजन विशेष फलदायक सिद्ध होते हैं। इस दिन एकाग्रता से पूजा, व्रत और मंत्र जाप करने से सौभाग्य, आरोग्य और आध्यात्मिक सिद्धि की प्राप्ति होती है।