क्या एनडीए बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन का गढ़ बलरामपुर सीट तोड़ पाएगा?

सारांश
Key Takeaways
- बलरामपुर विधानसभा सीट का गठन 2008 में हुआ था।
- यह क्षेत्र मुस्लिम बहुल है, जहां 60.80% मुस्लिम मतदाता हैं।
- यह क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से बाढ़-प्रवण है।
- 1856 का बलरामपुर युद्ध ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
- 2025 के चुनाव में मतदाता सूची के पुनरीक्षण की रणनीति महत्वपूर्ण होगी।
नई दिल्ली, 3 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी के बीच कटिहार जिले की बलरामपुर विधानसभा सीट सभी राजनीतिक दलों के लिए खास महत्व रखती है। यह सामान्य वर्ग की सीट 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के तहत बनाई गई थी और यह कटिहार लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है, जिसमें बरसोई और बलरामपुर प्रखंड शामिल हैं।
भौगोलिक दृष्टि से यह क्षेत्र पश्चिम बंगाल की सीमा के निकट स्थित है, जहाँ गंगा के उत्तरी तट पर कोसी और महानंदा नदियों का संगम होता है। यह एक बाढ़-प्रवण क्षेत्र है, जहाँ की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर करती है। यहाँ धान, गेहूं, मक्का, दालों और कुछ स्थानों पर जूट प्रमुख फसलें उगाई जाती हैं। रोजगार के लिए कई लोग अन्य राज्यों में पलायन करते हैं, जबकि पश्चिम बंगाल से निकटता के चलते सीमावर्ती व्यापार भी होता है।
चुनाव आयोग के अनुसार, 2020 में यहाँ की अनुमानित जनसंख्या 699375 थी, जिसमें 353106 पुरुष मतदाता और 346269 महिला मतदाता शामिल थे। यहाँ लगभग 60.80% मुस्लिम मतदाता, 12% अनुसूचित जाति और 1.62% जनजाति के मतदाता हैं। इस क्षेत्र में मुस्लिम जनसंख्या अधिक है।
पिछले तीन विधानसभा चुनावों पर गौर करें तो, 2010 में निर्दलीय हिंदू उम्मीदवार दुलाल चंद्र गोस्वामी ने सीपीआई(एमएल) के महबूब आलम को हराया था, जब मुस्लिम वोटों का विभाजन हुआ था। बाद में गोस्वामी जदयू में शामिल हो गए। 2015 में जदयू और भाजपा के गठबंधन के टूटने के बाद, जदयू ने गोस्वामी को उम्मीदवार बनाया, जबकि भाजपा ने वरुण झा को उतारा, लेकिन महबूब आलम ने 20,419 वोटों से जीत दर्ज की। 2020 में सीपीआई(एमएल) ने राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल होकर 53,597 वोटों से जीत हासिल की।
बलरामपुर का ऐतिहासिक महत्व भी उल्लेखनीय है। 1856 में यहाँ नवाब सिराज-उद-दौला और पूर्णिया के नवाबजंग के बीच बलरामपुर का युद्ध हुआ था, जिसमें लगभग 12 हजार लोग मारे गए थे। बाद में यह क्षेत्र एक महत्वपूर्ण अंतर्देशीय बंदरगाह बना, लेकिन फरक्का बैराज और नदियों के प्रवाह में बदलाव के कारण इसकी स्थिति बिगड़ गई। हाल ही में सड़क और पुलों के निर्माण ने इसे बिहार का द्वार फिर से स्थापित करने में मदद की है।
राजनीतिक दृष्टिकोण से बलरामपुर महागठबंधन का मजबूत गढ़ बन चुका है, जबकि एनडीए इस सीट पर अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास कर रहा है। 2025 के चुनाव में मतदाता सूची के पुनरीक्षण जैसे मुद्दों को वोट ध्रुवीकरण की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह रणनीति महागठबंधन की पकड़ को कमजोर कर पाएगी या नहीं।