क्या ओडिशा के इस स्थान पर श्राद्ध कर्म से पितरों को मोक्ष मिलता है?

Click to start listening
क्या ओडिशा के इस स्थान पर श्राद्ध कर्म से पितरों को मोक्ष मिलता है?

सारांश

ओडिशा, श्राद्ध कर्म और पितृ तर्पण का एक पवित्र स्थल है। यहाँ के विभिन्न तीर्थों पर श्रद्धालु सालाना अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए अनुष्ठान करते हैं। जानिए जाजपुर, पुरी और भुवनेश्वर के महत्व के बारे में।

Key Takeaways

  • ओडिशा का जाजपुर पितृ तर्पण के लिए प्रसिद्ध है।
  • गयासुर की पौराणिक कथा इस क्षेत्र के महत्व को दर्शाती है।
  • पुरी में पितृ पक्ष के दौरान हजारों श्रद्धालु आते हैं।
  • भुवनेश्वर में श्राद्ध करने से वाराणसी समान फल मिलता है।
  • यह स्थल धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक है।

ओडिशा, 20 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर में ओडिशा का एक अद्वितीय स्थान है। यहाँ के मंदिर, तीर्थ और धार्मिक मान्यताएँ न केवल हिंदुओं की आस्था का केन्द्र हैं बल्कि पौराणिक कथाओं से भी गहराई से जुड़ी हुई हैं। विशेष रूप से पितृ तर्पण और श्राद्ध अनुष्ठानों के संदर्भ में ओडिशा के कई स्थल अत्यंत पवित्र माने जाते हैं। जाजपुर, पुरी और भुवनेश्वर ऐसे प्रमुख स्थान हैं जहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु अपने पितरों की शांति और मोक्ष के लिए अनुष्ठान करते हैं।

ओडिशा का जाजपुर जिला पितृ तर्पण और श्राद्ध के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। इसे नाभि गया भी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, गयासुर भगवान विष्णु का परम भक्त था। उसने वर्षों तक तपस्या कर यह वरदान पाया कि उसका शरीर इतना पवित्र हो जाए कि जो भी उसके दर्शन करेगा, उसे तुरंत मोक्ष मिल जाएगा। इस वरदान के प्रभाव से गयासुर ने अपने शरीर को इतना विशाल बना लिया कि समस्त मानव जाति को मुक्ति मिल सके। किंतु उसके इस वरदान से इंद्र भयभीत हो गए और उन्होंने त्रिमूर्तियों ब्रह्मा, विष्णु और महेश से सहायता मांगी।

त्रिमूर्तियाँ ब्राह्मणों का रूप धारण कर गयासुर के पास पहुंचे और उससे यज्ञ के लिए भूमि मांगी। उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर कोई भी स्थान पवित्र नहीं है, इसलिए उसका शरीर ही सर्वोत्तम भूमि हो सकता है। गयासुर सहमत हो गया और सात दिनों तक यज्ञ के लिए अपने शरीर को समर्पित कर दिया। उसने अपने शरीर को इतना फैलाया कि उसका सिर गया (बिहार), नाभि जाजपुर (ओडिशा) और पैर पीठापुरम (आंध्र प्रदेश) तक पहुंच गए।

यज्ञ के अंतिम दिन शिव ने मुर्गे का रूप लेकर आधी रात को बांग दी। गयासुर इसे प्रातः समझकर उठ गया और यज्ञ अपूर्ण रह गया। अपनी भूल पर पश्चाताप करते हुए उसने क्षमा मांगी। तब त्रिमूर्तियों ने आशीर्वाद दिया कि उसके कारण ये तीनों स्थल सदा पवित्र रहेंगे। यही कारण है कि गया, जाजपुर और पीठापुरम आज भी पितृ तर्पण और शक्ति पीठ के रूप में पूजनीय हैं।

जाजपुर का बिरजा मंदिर, जिसे गिरिजा शक्तिपीठ भी कहा जाता है, यहाँ का प्रमुख तीर्थ स्थल है। इस मंदिर में स्थित गहरे कुएं में पिंड अर्पित किए जाते हैं। मान्यता है कि इस कुएं में चाहे जितना भी अर्पण किया जाए, वह धीरे-धीरे अदृश्य हो जाता है, जो पितरों तक पहुंचने का प्रतीक माना जाता है।

चार धामों में से एक पुरी भी पितृ तर्पण के लिए महत्वपूर्ण स्थान है। जगन्नाथ मंदिर के कारण यह विश्वप्रसिद्ध है, लेकिन पितृ पक्ष में यहाँ पिंडदान का विशेष महत्व है। आश्विन मास में हजारों श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं और महानदी व भार्गवी नदी के संगम स्थल पर श्राद्ध कर्म करते हैं।

पौराणिक मान्यता है कि इस संगम पर पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। यही कारण है कि पितृ पक्ष के दौरान पुरी आस्था और श्रद्धा का अद्भुत संगम बन जाता है। यहाँ किए गए तर्पण से आत्मा को शांति और मुक्ति का मार्ग मिलता है।

ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर को उत्कल-वाराणसी और गुप्त काशी कहा जाता है। यहाँ काशी की तरह असंख्य शिव मंदिर हैं। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि भुवनेश्वर में श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों को वही फल मिलता है जो वाराणसी में मिलता है। यही कारण है कि यहाँ भी बड़ी संख्या में लोग पितृ पक्ष में अनुष्ठान करने आते हैं।

Point of View

ओडिशा का यह धार्मिक महत्व न केवल क्षेत्रीय आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह पूरे भारत की सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक एकता को दर्शाता है। ऐसे धार्मिक स्थलों की पहचान और संरक्षण आवश्यक है।
NationPress
20/09/2025

Frequently Asked Questions

ओडिशा में श्राद्ध कर्म का महत्व क्या है?
ओडिशा में श्राद्ध कर्म का महत्व बहुत अधिक है। यहाँ के पवित्र स्थलों जैसे जाजपुर, पुरी और भुवनेश्वर में श्रद्धालु अपने पितरों के लिए विशेष अनुष्ठान करते हैं, जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जाजपुर का बिरजा मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?
जाजपुर का बिरजा मंदिर, जिसे गिरिजा शक्तिपीठ भी कहा जाता है, पितृ तर्पण के लिए प्रमुख तीर्थ स्थल है। यहाँ पिंड अर्पित करने की मान्यता है कि यह पितरों तक पहुँचता है।
पुरी में पितृ तर्पण का स्थान क्या है?
पुरी में जगन्नाथ मंदिर के कारण पितृ तर्पण का विशेष महत्व है। यहाँ पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भुवनेश्वर में श्राद्ध का महत्व क्या है?
भुवनेश्वर को उत्कल-वाराणसी और गुप्त काशी कहा जाता है। यहाँ श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों को वही फल मिलता है जो वाराणसी में मिलता है।
ओडिशा में कौन-कौन से प्रमुख स्थान हैं जो पितृ तर्पण के लिए जाने जाते हैं?
ओडिशा में जाजपुर, पुरी और भुवनेश्वर प्रमुख स्थान हैं जहाँ पितृ तर्पण और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं।