क्या त्रिपुष्कर और रवि योग का अद्भुत संयोग शनिदेव का प्रकोप दूर कर सकता है?

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क्या त्रिपुष्कर और रवि योग का अद्भुत संयोग शनिदेव का प्रकोप दूर कर सकता है?

सारांश

आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर त्रिपुष्कर और रवि योग का अद्भुत संयोग बन रहा है। जानिए, शनिदेव के प्रकोप से मुक्ति पाने के लिए क्या विशेष उपाय किए जा सकते हैं। यह दिन आपके लिए कई लाभकारी अवसर लेकर आ सकता है।

Key Takeaways

  • त्रिपुष्कर योग और रवि योग का अद्भुत संयोग इस दिन है।
  • शनिदेव की पूजा का विशेष महत्व है।
  • 7 शनिवार व्रत रखने से शनिदेव के प्रकोप से मुक्ति मिलती है।
  • शनि देव को प्रसन्न करने के लिए विशेष उपाय करना चाहिए।
  • पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाना शुभ माना जाता है।

नई दिल्ली, 12 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि शनिवार को है। इस दिन सूर्य सिंह राशि और चंद्रमा वृषभ राशि में रहेंगे। इस दिन त्रिपुष्कर और रवि योग का अद्भुत संयोग बन रहा है।

दृक पंचांग के अनुसार, इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 52 मिनट से शुरू होकर दोपहर के 12 बजकर 42 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय सुबह के 9 बजकर 11 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 44 मिनट तक रहेगा।

रवि योग ज्योतिष में एक शुभ योग माना गया है। यह तब बनता है, जब चंद्रमा का नक्षत्र सूर्य के नक्षत्र से चौथे, छठे, नौवें, दसवें और तेरहवें स्थान पर होता है। इस दिन निवेश, यात्रा, शिक्षा या व्यवसाय से संबंधित काम की शुरुआत करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है।

वहीं, इस दिन 'त्रिपुष्कर योग' भी बन रहा है। यह योग तब बनता है, जब रविवार, मंगलवार या शनिवार के दिन द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी में से कोई एक तिथि हो।

शनिवार का दिन होने के कारण शनि देव की पूजा का विशेष महत्व है। कई लोग शनिदेव को भय की दृष्टि से भी देखते हैं, लेकिन यह धारणा गलत है। ज्योतिष शास्त्र में मान्यता है कि शनि देव व्यक्ति को संघर्ष देने के साथ-साथ उन्हें सोने की तरह चमका भी देते हैं।

शनि देव व्यक्ति को उनके वर्तमान जीवन में ही उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। जब शनि की साढ़े साती, ढैय्या या महादशा चलती है, तो व्यक्ति को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे आर्थिक संकट, नौकरी में समस्या, मान-सम्मान में कमी और परिवार में कलह।

ऐसे में शनिवार का व्रत शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या में आने वाली समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। यह व्रत किसी भी शुक्ल पक्ष के शनिवार से शुरू किया जा सकता है।

मान्यताओं के अनुसार, 7 शनिवार व्रत रखने से शनिदेव के प्रकोप से मुक्ति मिलती है और हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होने लगती है।

शनि देव को प्रसन्न करने के लिए इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें। इसके बाद शनिदेव की प्रतिमा को जल से स्नान कराएं, उन्हें गुड़, काले वस्त्र, काले तिल, काली उड़द की दाल और सरसों का तेल अर्पित करें और उनके सामने सरसों के तेल का दीपक भी जलाएं। रोली, फूल आदि चढ़ाने के बाद जातक को शनि स्त्रोत का पाठ करना चाहिए, साथ ही सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का भी पाठ करना चाहिए। इसके साथ ही राजा दशरथ की रचना 'शनि स्तोत्र' का पाठ भी करना चाहिए।

पूजन के बाद 'शं शनैश्चराय नम:' और 'सूर्य पुत्राय नम:' और 'छायापुत्राय नम:' का जाप करना चाहिए।

मान्यता है कि पीपल के पेड़ पर शनिदेव का वास होता है। हर शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना और छाया दान करना (सरसों के तेल का दान) बेहद शुभ माना जाता है और इससे नकारात्मकता भी दूर होती है और शनिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

Point of View

जो न केवल धार्मिक संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं, बल्कि लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में भी सहायक हो सकते हैं। शनिदेव की पूजा से जुड़ी मान्यताओं पर ध्यान देना आवश्यक है, जिससे कि समाज में जागरूकता बढ़े और लोग अपने कर्मों के प्रति सजग रहें।
NationPress
12/09/2025

Frequently Asked Questions

त्रिपुष्कर योग क्या है?
यह योग तब बनता है जब रविवार, मंगलवार या शनिवार के दिन द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी में से कोई एक तिथि हो।
रवि योग का महत्व क्या है?
रवि योग ज्योतिष में एक शुभ योग माना जाता है, जो कई कार्यों की शुरुआत के लिए अनुकूल होता है।
शनि देव को कैसे प्रसन्न करें?
शनिवार को व्रत रखकर, उन्हें गुड़, काले वस्त्र, और सरसों का तेल अर्पित कर उनकी पूजा की जाती है।
पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाने का महत्व?
पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाना शनिदेव की कृपा प्राप्त करने और नकारात्मकता दूर करने के लिए शुभ माना जाता है।
शनिवार का व्रत कब से शुरू किया जा सकता है?
यह व्रत किसी भी शुक्ल पक्ष के शनिवार से शुरू किया जा सकता है।