क्या भारत के स्थायी प्रतिनिधि ने सेना प्रमुख से महत्वपूर्ण मुलाकात की?
सारांश
Key Takeaways
- भारतीय सेना की यूएन शांति अभियानों में बढ़ती भूमिका महत्वपूर्ण है।
- दक्षिण एशिया के भू-रणनीतिक परिदृश्य पर विचार किया गया।
- सुरक्षा और कूटनीति के एकीकृत उपयोग पर चर्चा हुई।
- ब्लू हेलमेट्स शांति अभियानों का अभिन्न हिस्सा हैं।
- भविष्य में नवोन्मेषी सोच की आवश्यकता होगी।
नई दिल्ली, 24 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। थलसेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने बुधवार को संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पी. हरीश से मुलाकात की। इस महत्वपूर्ण बैठक में भारतीय सेना की यूएन शांति अभियानों में बदलती भूमिका पर विस्तार से चर्चा की गई।
इसके अलावा, दक्षिण एशिया के उभरते भू-रणनीतिक परिदृश्य और शांति, स्थिरता एवं सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए सैन्य क्षमता और कूटनीति के एकीकृत उपयोग पर भी विचार किया गया।
बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा की। इसमें संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में भारत के योगदान को और अधिक प्रभावी बनाने के तरीकों पर विचार किया गया। इसके साथ ही, तकनीकी उन्नति की संभावनाओं पर भी चर्चा की गई।
संघर्ष क्षेत्रों में तैनात भारतीय सेना के जवानों की सुरक्षा, प्रशिक्षण और आधुनिक उपकरणों की आवश्यकताओं पर भी ध्यान दिया गया।
दक्षिण एशिया में बदलते सामरिक परिदृश्य का क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की रणनीतिक प्राथमिकताओं को मजबूती देने में सैन्य नेतृत्व और कूटनीति की समन्वित भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
बुधवार को हुआ यह संवाद भारतीय सेना की वैश्विक जिम्मेदारियों को और सुदृढ़ करने और भारत की कूटनीतिक पहुंच को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
आपको बता दें कि दुनिया आज एक निर्णायक मोड़ पर है, जहां 90 से अधिक देश 56 से अधिक सक्रिय संघर्षों में शामिल हैं। इन संघर्षों ने वैश्विक व्यवस्था को जटिल बना दिया है। इससे पहले एक सम्मेलन में, सेना प्रमुख ने विश्व शांति में भारत के योगदान और प्रतिबद्धता की जानकारी साझा की थी।
उन्होंने बताया कि भारत अब तक 51 संयुक्त राष्ट्र मिशनों में लगभग 3 लाख सैनिक (पुरुष और महिलाएं) भेज चुका है। जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा कि यह कुल 71 मिशनों में से सबसे अधिक है। उन्होंने बताया कि कोरिया (1950) और कांगो (1960) से लेकर आज तक 11 में से 9 चल रहे मिशनों में भारत की सक्रिय उपस्थिति है।
उन्होंने कहा कि भारत न केवल सैनिक भेजने वाला देश है, बल्कि अनुभव साझा करने में भी अग्रणी है। नई दिल्ली स्थित संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र को राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र के रूप में विकसित किया गया है, जहां अनेक देशों के अधिकारी प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में इस सम्मेलन का आयोजन, भारत की उस भावना का प्रतीक है, जिसे हम वसुधैव कुटुम्बकम् और विश्व बंधु के रूप में मानते हैं। विश्व एक परिवार है और भारत सबका मित्र है। शांति स्थापना के बदलते स्वरूप पर दृष्टि डालते हुए थलसेना प्रमुख ने वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि आज शांति स्थापना अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना कर रही है।
उन्होंने कहा कि आज का शांति सैनिक केवल सुरक्षा प्रदाता नहीं है, बल्कि राजनयिक, तकनीकी विशेषज्ञ, समाज निर्माता और कभी-कभी संघर्ष क्षेत्रों में सूचना का एकमात्र माध्यम भी बन जाता है।
उन्होंने ब्लू हेलमेट्स पहनने वाले शांति सैनिकों के लिए कहा कि ब्लू हेलमेट्स वास्तव में वह ‘गोंद’ हैं जो मिशन को एकजुट रखती है।
सेना के अनुसार, भविष्य के शांति अभियानों के लिए हमें नवोन्मेषी सोच और व्यावहारिक अनुकूलन की आवश्यकता है। शांति स्थापना अब केवल सशस्त्र उपस्थिति तक सीमित न रहकर, निवारक कूटनीति और दीर्घकालिक शांति निर्माण की दिशा में आगे बढ़नी चाहिए।