क्या राममनोहर लोहिया ने समाजवाद की मशाल जलाई और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई?

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क्या राममनोहर लोहिया ने समाजवाद की मशाल जलाई और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई?

सारांश

राममनोहर लोहिया का जीवन एक प्रेरणादायक कहानी है, जिसने भारतीय समाजवाद को नई दिशा दी। उनके संघर्ष और विचारधारा ने उन्हें न केवल एक नेता, बल्कि एक विचारक के रूप में स्थापित किया। जानें कैसे उन्होंने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और समाज में समानता के लिए जंग लड़ी।

Key Takeaways

  • राममनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को हुआ।
  • उन्होंने समाजवाद को भारतीय मिट्टी से जोड़ा।
  • लोहिया ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई।
  • उनकी विरासत आज भी प्रासंगिक है।
  • लोहिया ने महिलाओं के अधिकारों पर जोर दिया।

नई दिल्ली, 11 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। सरयू नदी के किनारे स्थित उत्तर प्रदेश के अकबरपुर जिले में 23 मार्च 1910 को जन्मे राममनोहर लोहिया केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचारधारा थे। उनके पिता हीरालाल की देशभक्ति और मां दीवान देवी के असमय निधन ने उनके बचपन को विद्रोही बना दिया।

गांव की मिट्टी में पले-बढ़े लोहिया ने किसानों की पीड़ा और जातिगत भेदभाव को निकटता से देखा, जिसने उनके दिल में समाजवाद की चिंगारी फैलाई। बर्लिन में पढ़ाई से लेकर स्वतंत्रता संग्राम की जेलों तक, लोहिया ने हर कदम पर अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज उठाई।

उनकी कलम और कर्म ने न केवल ब्रिटिश शासन को चुनौती दी, बल्कि आजादी के बाद भी जाति, असमानता और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ जंग छेड़ी।

राममनोहर लोहिया का बचपन अकबरपुर के ग्रामीण परिवेश में बीता, जहां उन्होंने किसानों की सिसकियां सुनीं और जाति की बेड़ियां देखीं। यही अनुभव उनके हृदय में समाजवाद का बीज बो गया। शिक्षा के सफर में लोहिया ने कभी किताबों को ही सीमित नहीं रखा। कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद वे बर्लिन पहुंचे।

जर्मनी की सड़कों पर नाजीवाद का साया मंडराने लगा था। लोहिया ने वहां अर्थशास्त्र और राजनीति में डॉक्टरेट हासिल की, लेकिन किताबों से ज्यादा जीवन से सीखा। जर्मन भाषा सीखने में उन्होंने मात्र तीन महीने लगाए, प्रोफेसर जोम्बार्ट को चकित कर दिया। लेकिन हिटलर के उदय ने उन्हें झकझोर दिया। वे भारत लौटे और नई क्रांति के प्रणेता बने।

1934 में वे भारत पहुंचे और सीधे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (सीएसपी) से जुड़े। जयप्रकाश नारायण के साथ मिलकर उन्होंने समाजवाद को भारतीय मिट्टी से जोड़ा। लोहिया का मानना था, "समाजवाद सिर्फ किताबी नहीं, बल्कि कर्म का धर्म है।" उनकी कलम ने 'कांग्रेस सोशलिस्ट' पत्रिका को नई जान दी, जहां वे अन्याय की जड़ों पर प्रहार करते।

देश आजाद होने के बाद वे जवाहरलाल नेहरू के कांग्रेस शासन में असंतुष्ट रहे। उन्होंने 'सप्त क्रांति' का नारा दिया। जाति उन्मूलन, भाषा नीति में हिंदी को प्राथमिकता, छोटे राज्यों का गठन ये उनके सपने थे। वे गोवा मुक्ति आंदोलन में सक्रिय रहे, जहां पुर्तगालियों के खिलाफ आवाज बुलंद की।

राममनोहर लोहिया ने महिलाओं के अधिकारों पर जोर दिया और कहा कि समाजवाद बिना लैंगिक समानता के अधूरा है। 12 अक्टूबर 1967 को नई दिल्ली में उनका निधन हुआ, लेकिन लोहिया की विरासत अमर है। आज जब जाति की दीवारें खड़ी हैं, भाषाई विवाद सुलगते हैं तो लोहिया की आवाज गूंजती है।

राम मनोहर लोहिया केवल एक नेता नहीं, बल्कि विद्रोह और समानता का दर्शन थे। उनका जीवन साबित करता है कि एक व्यक्ति की कलम और कर्म से क्रांति आ सकती है।

Point of View

बल्कि उनके विचारों ने समाज में समानता और न्याय की दिशा में एक नई सोच को जन्म दिया। उनके सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं, विशेषकर जाति और लैंगिक समानता के मुद्दों पर।
NationPress
11/10/2025

Frequently Asked Questions

राममनोहर लोहिया का जन्म कब हुआ?
राममनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को हुआ।
लोहिया ने किस पार्टी से जुड़कर समाजवाद को आगे बढ़ाया?
उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (सीएसपी) से जुड़कर समाजवाद को आगे बढ़ाया।
लोहिया के प्रमुख विचार क्या थे?
लोहिया के प्रमुख विचारों में जाति उन्मूलन और लैंगिक समानता शामिल हैं।
लोहिया का निधन कब हुआ?
राममनोहर लोहिया का निधन 12 अक्टूबर 1967 को हुआ।
लोहिया का योगदान आज के समाज में कैसे प्रासंगिक है?
लोहिया के विचार आज भी जाति और लैंगिक समानता के मुद्दों पर चर्चा के लिए प्रासंगिक हैं।